Baghpat News: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बरनावा गांव के प्राचीन टीले को लेकर बागपत कोर्ट ने आज सोमवार (5 फरवरी) को 53 साल बाद फैसला सुना दिया है. अदालत ने मुकदमे के प्रतिवादी कृष्णदत्त जी महाराज के पक्ष में फैसला सुनाते हुए प्राचीन टीले को लाक्षागृह (लाखामंडप) ही माना है. उधर प्राचीन टीले पर मुस्लिम पक्ष के दरगाह और कब्रिस्तान होने के दावे को खारिज कर दिया है. अदालत के फैसले के बाद लाक्षागृह की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है और पुलिस को अलर्ट मोड पर रखा गया है.


बागपत के बरनावा गांव निवासी मुकीम खां ने 31 मार्च 1970 में मेरठ जनपद की अदालत में वाद दायर किया था, जिसमें ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए कहा था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है. कृष्णदत्त जी महाराज जनपद के बाहर का रहने वाला है जो प्राचीन टीले पर कब्रिस्तान को खत्म कर यहां हिंदुओं का बड़ा तीर्थ बनाना चाहता है.


वहीं प्रतिवादी कष्ण दत्त जी महाराज की ओर से दावा किया था कि जिस स्थान पर मुकीम खां दरगाह और कब्रिस्तान बता रहा है वहां शिव मंदिर और लाखामंडप है, जिसके अवशेष लाक्षागृह पर अभी भी मौजूद हैं. टीले की कुछ भूमि का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अधिग्रहण कर रखा है, शेष भूमि श्री गांधी धाम समिति की है. अदालत में दोनों ओर से पैरवी की गई. दोनों ओर से पेश साक्ष्यों के आधार पर आज सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम शिवम द्विवेदी ने बरनावा के प्राचीन टीले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए टीले को महाभारात काल का लाक्षागृह यानी लाखामंडप ही माना है. कोर्ट ने जजमेंट दिया है कि यह कोई कब्रिस्तान नहीं है यह लक्ष्यागृह है और यह महाभारत काल का ही है.


पांडव को जलाने के लिए बनाया गया था लाखामंडपम 


कोर्ट में गवाही और एविडेंस के बाद कोर्ट ने यह पाया कि वास्तव में कब्रिस्तान नहीं है और यह 108 बीघा जमीन जो एक ऊंचा टिला है यहां पर पांडव आए थे. उनको जलाने मारने के लिए एक लाखामंडपम बनाया गया था और रेवेन्यू कोर्ट में भी दर्ज है. आज तक भी कागजों में लाखामंडप भी दर्ज है, कोर्ट ने इस बात को मान कुछ जमीन वन विभाग की भी दी थी. 


वादी के वकील करेंगे फाइल अपील 


हिंदू पक्ष के पैरोकार विजयपाल कश्यप ने बताया मैं लाक्षागृह पर ही रहता हूं और वहीं सेवा करता हूं न्याय का फैसला आया है. इसे कोई कुछ बताता तो तो कोई कुछ बताता था. अब यह न्याय का फैसला है, करीब 54-55 साल तक मुकदमा चला. वहीं वादी के वकील शाहिद खां ने कहा कि हम फैसला का अध्ययन करेंगे और फाइल अपील करेंगे. यह मुकदमा 1970 से चल रहा था और अदालत में मुकदमा हमने ही किया था जो अदालत ने खारिज कर दिया है. वहीं इतिहास कार अमित राय जैन ने कहा कि बरनावा गांव में इतिहास छिपा है. यहां पर एएसआइ को भी पुरावशेष मिल चुके हैं, यहां से महाभारत काल के अवशेष मिल चुके हैं, यह सिद्ध भी हो चुका है.


ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज बरनावा में देते थे प्रवचन


बता दें कि ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज वर्ष 1960 के आसपास बरनावा गांव में आए थे. वह लेटकर यैगिक मुद्रा में प्रवचन दिया करते थे, उस समय उनके पास लाउडस्पीकर रख दिया जाता था और उनके अनुयायी आसपास बैठकर प्रवचन सुना करते थे. इस दौरान उनके प्रवचनों को रिकार्ड कर लिया जाता था. कई राज्यों से लोग उनके प्रवचन सुनने आया करते थे. गांधी धाम समिति के प्रबंधक व मंत्री राजपाल त्यागी ने बताया कि वह जब भी सीधे लेट जाते थे तो 10 मिनट बाद ही वह वेद मंत्र करते थे और उनके बाद प्रवचन करने लगते थे. वह ज्यादातर प्रवचनों के दौरान सतयुग, त्रेता और द्वापर युग का आंखों देखा वर्णन किया करते थे. उनके प्रवचनों से पता चलता है कि वह ऋंगऋषि की आत्मा थे. 15 अक्बूबर 1992 में उनका निधन हुआ था.


पुरातत्व विभाग कर चुका है खुदाई


बरनावा गांव से सटे प्राचीन टीले के कुछ हिस्से की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग खुदाई कर चुका है, जिनमें प्राचीन धरोहरें निकली. जिसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग ने संबंधित स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित कर अपना बोर्ड लगा दिया था. प्राचीन टीले को पर्यटन के रूप में विकसित करने के प्रयास किए गए. जिस पर लाखों रुपये खर्च हुए हैं. यहां दूर-दराज से घूमने के लिए हर रोज लोग आते हैं और गुफा आदि को देखते हैं.


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