Ayodhya Ram Mandir Inauguration: अयोध्या में आज रामभक्त 500 साल पुराने सपने को पूरा होते हुए देख रहे हैं, इस मंदिर के बनने के पीछे कई कहानियां, जिन्होंने अपना पूरी जीवन भगवान राम को समर्पित कर दिया. ऐसा ही एक नाम पत्रकार प्रो अजय श्रीवास्तव का है. बात साल 1982 की है जब वाराणसी के शिवपुरी के नजदीक तरना गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम से लौटते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद एक युवा भगवान राम के दर्शन के लिए पहुंचा. भगवान राम के विग्रह को ताले में बंद देखकर इस युवा की आखों में आंसू भर आए और उसने संकल्प लिया कि राम काज में जो कुछ हो सकेगा, उसके लिए पूरा जीवन समर्पित कर देगा. बाद में यही युवा आगे चलकर पत्रकार बना. जिसने पाञ्चजन्य, जनसत्ता और वीर प्रताप जैसे बड़े समाचार पत्रों में अपनी लेखनी का डंका बजाया.कई बार अयोध्या जाकर भी रिपोर्टिंग की.


हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से बतौर प्रोफेसर रिटायर हुए अजय श्रीवास्तव के करियर की शुरुआत बतौर पत्रकार हुई. बचपन से ही राष्ट्र स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ाव के चलते हुए सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए थे. राम मंदिर आंदोलन में 6 दिसंबर, 1992 के उस ऐतिहासिक घटना के साक्षी अजय श्रीवास्तव भी हैं. वह विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय महामंत्री आचार्य गिरिराज किशोर और पाञ्चजन्य के पूर्व संपादक भानु प्रताप शुक्ल के निर्देश पर 1 दिसंबर को ही अयोध्या पहुंच गए थे. यहां उन्होंने मीडिया प्रबंधन का भी कामकाज संभाला.


झूठ बोलकर पहुंचे थे अयोध्या
हिमाचल के कांगड़ा मुख्यालय धर्मशाला में जनसत्ता समाचार पत्र के साथ रिपोर्टर रहते हुए वह संपादक को बिना बताए अयोध्या चले आए थे. बाद में अयोध्या से ही फैक्स के जरिए यह संदेश भिजवाया कि बीमारी की वजह से उन्हें लखनऊ आना पड़ा है. दरअसल, ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि इससे पहले एक बार साल 1990 में 30 अक्टूबर को जब कार सेवा में आना चाहते थे, तो चंडीगढ़ में उनके संपादक ओम थानवी ने उनकी छुट्टी स्वीकार नहीं की थी.


एबीपी लाइव को सुनाई पूरी कहानी
प्रो. अजय श्रीवास्तव ने 6 दिसंबर के उस ऐतिहासिक पल को अपनी आंखों से देखा. अजय श्रीवास्तव ने एबीपी लाइव को बताया कि वे न केवल साक्षी रहे, बल्कि उन्होंने इसमें हिस्सा भी लिया. इस दौरान कई कार सेवक घायल हुए, तो उन्होंने उनके लिए दवा का भी प्रबंध किया. जहां वे रुके थे वहां से पुलिस की छापेमारी के दौरान उनकी अटैची और सभी कपड़े गायब हो चुके थे. इसके बाद उनकी जेब पूरी तरह खाली हो चुकी थी, क्योंकि वह चाय वाले को पहले ही 300 रुपए एडवांस दे चुके थे. चाय के हर एक कप को वह घायल कर सेवकों तक पहुंचा रहे थे.


अयोध्या में माहौल बेहद चिंताजनक था. हर कोई सहमा भी हुआ था. चाय बनाने के लिए 300 रुपए एडवांस ले चुका चाय वाला भी कर्फ्यू में पुलिस के डर से अपना सामान लेकर वहां से जा चुका था. अजय श्रीवास्तव को भी घर पर अपनी डेढ़ महीने की बेटी के साथ परिवार की चिंता सता रही थी, लेकिन सिर पर राम काज करने का जुनून सवार था. बाद में वे अयोध्या से कानपुर तक अशोक सिंघल की बहन उषा दीदी के साथ वापस आए.


प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कही ये बात
अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि युवावस्था में उन्होंने जिस जिस इच्छा को पूरा करने का स्वप्न देखा था, वह आज पूरा हो रहा है. उन्होंने कहा, 22 जनवरी का दिन न केवल भारत, बल्कि विश्व के लोगों के लिए ऐतिहासिक होगा. बचपन से ही उनका रुझान धार्मिक और सामाजिक कार्यों में रहा. उनके जीवन की एक अन्य दिलचस्प बात यह भी है कि जब 1 फरवरी 1986 को राम जन्मभूमि में ताला खुला था, तभी उन्होंने दिल्ली में पाञ्चजन्य के पत्रकार के तौर पर काम भी शुरू किया था. यह राम कृपा ही थी, जो उस वक्त संयोग मात्र ही लगी.


साल 1983 में विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल की योजना से देश भर में एकात्मता यात्रा युगाब्ध- 5085 निकाली, जिसने पूरे देश में धर्म जागरण का माहौल बनाया. इस दौरान संघ कार्य करते हुए अजय श्रीवास्तव को जिला मिर्जापुर में उप यात्रा का प्रभारी बनाया गया था. यह इलाका बिहार और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर था. इस दौरान में 400 रुपए की एटलस साइकिल से सफर किया करते थे. मौजूदा वक्त में अजय श्रीवास्तव दिव्यांगों के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं. इसे भी वे खुद पर भगवान राम की कृपा मानते हैं. दिव्यांगों के अधिकार के लिए काम करते हुए वे कई बच्चों के जीवन में बड़ा बदलाव ला चुके हैं.


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