इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली दंगे के एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बेहद सख्त रुख अपनाते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. अदालत ने स्पष्ट कहा कि “आई लव मोहम्मद” जुलूस के दौरान “सिर तन से जुदा” जैसे नारे लगाना केवल दंगा भड़काने की कोशिश नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर सरकार, कानून व्यवस्था और देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसा कृत्य है. कोर्ट ने माना कि इस तरह के नारे समाज में भय और अशांति फैलाने के साथ-साथ हिंसा के लिए उकसाने की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा देते हैं.

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यह मामला मौलाना तौकीर रजा के सहयोगी बताए जा रहे रेहान से जुड़ा है, जिसकी जमानत याचिका पर जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों ने अपने-अपने तर्क रखे. कोर्ट ने पूरे मामले के तथ्यों और आरोपों का गहराई से अध्ययन करने के बाद याची को राहत देने से इनकार कर दिया.

एफआईआर और आरोपों का विवरण

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याची रेहान के खिलाफ बरेली दंगों को लेकर कोतवाली थाना में एफआईआर दर्ज की गई थी. आरोप है कि जुलूस के दौरान भड़काऊ नारे लगाए गए, जिनसे माहौल तनावपूर्ण हो गया और हिंसा भड़कने की स्थिति पैदा हुई. पुलिस के अनुसार, यह नारेबाजी कानून व्यवस्था को बिगाड़ने और लोगों को उकसाने के उद्देश्य से की गई थी.

हाईकोर्ट की कानूनी व्याख्या

हाईकोर्ट ने अपने नौ पन्नों के आदेश के पैरा 12 में कहा कि “गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सिर तन से जुदा” जैसे नारे न केवल कानून के शासन के खिलाफ हैं, बल्कि भारत की संप्रभुता और अखंडता पर भी सीधा प्रहार करते हैं. अदालत ने कहा कि ऐसे नारे लोगों को सशस्त्र विद्रोह के लिए प्रेरित कर सकते हैं, इसलिए यह कृत्य भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत दंडनीय माना जाएगा. कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इस तरह के नारे इस्लाम के मूल सिद्धांतों और उसकी शिक्षाओं के भी विपरीत हैं.

दोनों पक्षों की दलीलें

याची की ओर से अधिवक्ता अखिलेश कुमार द्विवेदी ने जमानत देने की अपील करते हुए कहा कि रेहान को झूठे आरोपों में फंसाया गया है. वहीं राज्य सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल अनूप त्रिवेदी और अपर शासकीय अधिवक्ता नितेश श्रीवास्तव ने जमानत का कड़ा विरोध किया और आरोपों की गंभीरता को रेखांकित किया.

अदालत का अंतिम फैसला

दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने रेहान की जमानत याचिका खारिज कर दी. अदालत ने साफ संदेश दिया कि समाज में नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने वाले किसी भी कृत्य के प्रति न्यायपालिका सख्त रुख अपनाएगी और कानून के दायरे में कठोर कार्रवाई से पीछे नहीं हटेगी.