नई दिल्ली: दिल्ली से वाराणसी तक की प्रस्तावित बुलेट ट्रेन (हाई स्पीड ट्रेन) कॉरिडोर के लिए डिटेल्ड प्रॉजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. इसके पहले चरण में ग्राउंड सर्वे करने के लिए एक विशेष तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है. सटीक जानकारी देने वाली इस तकनीक का प्रयोग देश में पहली बार अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन के ग्राउंड सर्वे के लिए किया गया था.


हेलिकॉप्टर से होगा लिडार सर्वे
इस तकनीक में लेज़र बीम वाले उपकरणों से लैस एक हेलिकॉप्टर का उपयोग किया जाएगा. इस तकनीक को लाईट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) तकनीक बोला जाता है.


कैसे काम करती है लिडार तकनीक
किसी भी रेल प्रॉजेक्ट का ग्राउंड सर्वे काफ़ी पेचीदा और मुश्किल होता है. क्योंकि सर्वे में प्रस्तावित ट्रैक और उसके आस-पास के पूरे इलाक़े के बारे में बेहद सटीक आंकड़ों की ज़रूरत होती है. इन आंकड़ों में ज़मीन कहां कहां कितनी ऊपर या नीचे है, ज़रूरी बिंदुओं के बीच की दूरी इत्यादि सैकड़ों माप लेनी होती हैं. इस लिडार सर्वे तकनीक में लेज़र डेटा, जीपीएस डेटा, फ़्लाइट पैरामीटर्स और वास्तविक फ़ोटोग्राफ़्स का सम्मिलित उपयोग किया जाता है.


इस सर्वे से किन चीजों के लिए आंकड़े जुटाए जाएंगे
आसमान से किए जाने वाले इस लिडार सर्वे से हाई स्पीड ट्रेन कॉरिडोर से सम्बंधित सभी ज़रूरी निर्माण के लिए स्थान चिन्हित किए जाएंगे, जिनमें से ये निर्माण प्रमुख हैं-


1. वर्टिकल और हॉरिज़ॉन्टल एलाइनमेंट
2. डिजाइनिंग
3. स्ट्रक्चर्स
4. स्टेशन और लोको डिपो
5. कॉरिडोर के लिए आवश्यक जमीन
6. इस प्रॉजेक्ट से सम्बंधित अन्य निर्माण और प्लॉट्स
7. ज़रूरी रास्ते


13 दिसम्बर से शुरू होगा हवाई सर्वेक्षण
परंपरागत तरीक़े से सर्वे करने पर अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड ट्रेन के सर्वे में क़रीब साल भर का समय लगता, लेकिन लिडार तकनीक से ये काम तीन महीने में हो गया था. इस सफलता को देखते हुए ही दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर के सर्वे के लिए भी लिडार तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है. दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर के लिए ज़रूरी स्थानों को रेफरेंस पोईंट के रूप में चिन्हित किया जा चुका है. अब हेलिकॉप्टर में लगे उपकरणों से डेटा कलेक्शन का काम भी 13 दिसम्बर से शुरू कर दिया जाएगा. ये कार्य मौसम को ध्यान में रखते हुए कई चरणों में किया जाएगा. सैन्य मंत्रालय ने सर्वे के लिए हेलिकॉप्टर उड़ाने की अनुमति दे दी है. हेलिकॉप्टर और उपकरणों की जांच का काम शुरू कर दिया गया है.


800 किलोमीटर का होगा कॉरिडोर, स्टेशन अभी तय नहीं
दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर अलग-अलग तरह के लैंड पैटर्न और टेरेन से होकर गुज़रेगा, जिसमें घनी आबादी वाले शहरी और ग्रामीण क्षेत्र होंगे, हाईवे, रोड, नदी, घाट, मैदान आदि भी रास्ते में आएंगे, जिन्हें कॉरिडोर के ट्रैक को पार करना होगा. इसलिए सर्वेक्षण के इस काम में कई तरह की चुनौतियां भी हैं. दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर की लम्बाई क़रीब 800 किलोमीटर की होगी. इस पर बनने वाले स्टेशनों के बारे में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है. केंद्र सरकार से सलाह के बाद ही ये तय होगा कि बुलेट ट्रेन कहां-कहां रुकेगी.


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