Successful Treatment Of Vain Of Gallon In Jodhpur Aiims: जोधपुर एम्स के डॉक्टरों की एक टीम ने मस्तिष्क की जन्मजात नसों व धमनियों से जुड़ी दुर्लभ बीमारी से ग्रसित दो शिशुओं का सफलतापूर्वक इलाज कर उन्हें नया जीवन दिया है. पूरे राजस्थान में यह अपनी तरह का पहला मामला बताया जा रहा है. दोनों बच्चों का इलाज इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग में किया गया. अब दोनों बच्चे पूरी तहर से स्वस्थ हैं. इस बीमारी का नाम 'वेन ऑफ गैलन' है जो आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान ही विकसित होती है.


क्या है वेन ऑफ गैलन
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग अध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र सिंह खेरा ने बताया कि जोधपुर व पाली जिले से दो शिशुओं को उपचार के लिए लाया गया था. वे वेन ऑफ गैलन नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थे. इस बीमारी में मस्तिष्क की धमनियां केंद्र में स्थित बड़ी नस से जुड़ी होती हैं, जिसे वेन कहा जाता  है. आम तौर पर धमनियां ऑक्सीजन युक्त रक्त लाने व ले जाने का काम करती हैं, लेकिन सीधे नस से जुड़ जाने के कारण इन दबाव बढ़ जाता है, इसके कारण ह्रदय रोग भी हो सकता है. इसके इलाज के लिए नस व धमनियों के जोड़ को अलग करना होता है, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद जटिल होती है और इसके लिए विशेष उपकरण की जरूरत होती है.


समय पर इलाज न मिलने पर मौत निश्चित
एम्स निदेशक डॉ. संजीव मिश्रा ने बताया कि एम्स जोधपुर में मस्तिष्क की नसों के जटिल रोगों (न्यूरोवास्कुलर डिसऑर्डर ) का उन्नत उपचार संभव है. उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत योजना के तहत इन बच्चों पूरा इलाज नि:शुल्क किया गया. उन्होंने बताया कि  बिना इलाज के इस बीमारी में मृत्यु निश्चित है एवं ऑपरेशन के दौरान भी मौत का खतरा 15-20 फीसदी रहता है. समय पर इलाज किया जाए तो बच्चे का मस्तिष्क नियमित रूप से विकसित होता है और वे सामान्य जीवन जीने में सक्षम होते हैं.


ऑपरेशन में लगे 3 घंटे
डॉ. मिश्रा ने बताया कि दोनों बच्चों के ऑपरेशन में पूरे 3 घंटे लगे. ऑपरेशन करने वाली टीम में इंटरवेंशनल रेडियोलोजी टीम से रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. पुष्पिंदर सिंह खेरा , रेडियोलॉजी के सहआचार्य डॉ. पवन कुमार गर्ग, रेडियोलॉजी के सहायक आचार्य डॉ. सर्बेश तिवारी, सीनियर रेजिडेंट डॉ. तुषार सुव्रा घोष, डॉ. अर्जुन लोकेश, बाल विभाग से अतिरिक्त प्रोफेसर, बाल गहन चिकित्सा प्रभारी डॉ. डेज़ी खेरा , बाल न्यूरो विशेषज्ञ एवं सहायक आचार्य डॉ. लोकेश सैनी, एनेस्थीसिया टीम में विभागाध्यक्ष डॉ. प्रदीप भाटिया व उनकी टीम शामिल रही. बच्चों को एक हफ्ते के अंदर छुट्टी दे दी जाएगी.


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