राजस्थान लोक सेवा आयोग की तरफ से आरएएस का परिणाम घोषित किया गया. इसमें उदयपुर की रहने वाली आकांक्षा ने पूरे प्रदेश भर में छठी रैंक हासिल किया है. शिक्षा विभाग में फर्स्ट ग्रेड शिक्षक पद पर कार्यरत हैं. आकांक्षा ने अपनी यह तैयारी बिना कोचिंग के की. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने अपनी तैयारी के अनुभव को साझा किया. उन्होंने बताया कि इस प्रतियोगी परीक्षा में बच्चों को पढ़ाते हुए किस तरह से तैयारी की.


आकांक्षा ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि कठिनाइयां तो काफी रही. जैसे की मैं लेक्चरर हूं तो सोचा कि कम से कम छुट्टियां ली जाए जिससे स्कूल के बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित ना हो और मेरी भी तैयारी होती जाए. यह पूरी मेरी सेल्फ स्टडी ही रही है, किसी भी प्रकार की कोचिंग नहीं की है सिवाए टेस्ट सीरीज के. उन्होंने बताया कि मेरे साथ समस्या थी कि मेरी पहले से राइटिंग स्किल्स तो अच्छी थी लेकिन पेपर लिखने कि जो मेरी स्पीड थी वह काम थी, जैसे मेन्स में 3 घंटे में पेपर लिखना होता है लेकिन मुझे साढ़े तीन घंटे से ज्यादा लग रहे थे. इसे मैंने काम किया.

 

मेन्स से ज्यादा तैयारी इंटरव्यू की थी

 

उन्होंने आगे बताया कि मेरे मेंस काफी अच्छे गए थे और उसे भी ज्यादा अच्छा इंटरव्यू गया था क्योंकि मैंने मेंस से ज्यादा इंटरव्यू की तैयारी की थी. रिटायर आईएएस महावीर शर्मा है उनके गाइडेंस में तैयारी की. उन्होंने बताया कि पहले से मेरे कोई ड्रीम नहीं था कि सिविल सर्विसेस में जाना. शिक्षा विभाग में आई जिसमें अब 7-8 साल हो चुके हैं. यहां मैंने महसूस किया कि इस स्कूल के सीमित दायरे से बाहर निकलना चाहिए. स्कूल के ही शिक्षकों ने मोटिवेट किया कि समाज से जुड़कर और समाज के लिए काम करना है तो सिविल सर्विसेस में जाइए. फिर मैंने सीरियस होकर इसकी तैयारी की.

 

उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में पहला अटेंप्ट दिया था तब मेरी करीब 950वीं रैंक बनी थी. तब मैंने परीक्षा भी सीरियस होकर नहीं दी थी. मैंने सुना था कि आरएएस में कोचिंग नहीं करोगे तो सफल होना मुश्किल है. मैं कभी जयपुर नहीं गई तो वहां कोचिंग का मानस ही नही बना. फिर सोचा कि उदयपुर में ही रहकर तैयारी करूंगी. फिर अनुभवी लोगों से राय ली और बुक्स सहित अन्य पाठ्य सामग्री से अपने नोट्स बनाए और तैयारी में जुटी. उन्होंने बताया कि स्कूल में जब परीक्षाएं होती थी तब छुट्टी लेती थी ताकि बच्चों की पढ़ाई ना बिगड़े. साथ ही स्कूल में 6-7 घंटे बिताने के बाद जो समय मिलता था उसमें पढ़ाई करती थी.

 

10 साल की थी तब पिता का निधन हुआ, परिवार का सपोर्ट मिला

 

उन्होंने बताया कि परिवार में 4 भाई बहन हैं जिसमें सबसे छोटी मैं हूं. 10 साल की थी तब पिता का निधन हो गया था. यहां तक पहुंचने में परिवार का बहुत साथ रहा क्योंकि मुझे सख्त निर्देश थे कि घर के कामों में ध्यान नहीं भटकाना है, सिर्फ पढ़ाई करनी है.
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