राजस्थान में एक तरफ सियासी महिमामंडन का हवाला देकर स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की किताबों को चुटकियों में बैन कर दिया जा रहा है, तो वहीं शिक्षा सत्र शुरू होने के ग्यारह दिन बीतने के बाद भी राज्य के तीन-चौथाई स्कूलों में अभी तक सरकारी किताबें नहीं बांटी जा सकी हैं.

किताबें नहीं होने से साठ लाख बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. हालांकि शिक्षा मंत्री का दावा है कि किताबें 15 जुलाई तक बांटने की कोशिश की जाएगी, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह संभव नहीं लगता.

इसका मकसद आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है

सवाल यह है कि सरकार की तरफ से बच्चों को मुफ्त में दी जाने वाली किताबें हर साल देर से क्यों बांटी जाती हैं और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों किया जाता है? राजस्थान में मौजूदा समय में शिक्षा परिषद से संचालित स्कूलों की संख्या तकरीबन छियासठ हजार है.

पहली से बारहवीं क्लास तक संचालित होने वाले इन स्कूलों में लगभग अठहत्तर लाख स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं. पिछले लंबे अरसे से इन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को राज्य सरकार की तरफ से मुफ्त में किताबें दी जाती हैं. इसका मकसद आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है.

तमाम क्लास की किताबें आधी-अधूरी हैं

राजस्थान में शिक्षा का नया सत्र एक जुलाई से शुरू होता है. नियमों के मुताबिक, सभी स्कूलों में जून महीने में ही किताबें पहुंच जानी चाहिए थीं और इसे पहली जुलाई को छात्रों को दिया जाना चाहिए था. लेकिन 11 दिन बीतने के बावजूद, अभी तक बमुश्किल 25 फीसदी स्कूलों में ही किताबें पहुंच सकी हैं.

इनमें भी तमाम क्लास की किताबें आधी-अधूरी हैं. जयपुर और जोधपुर जैसे बड़े शहरों के तमाम स्कूलों में तो किताबें पहुंची हैं, लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में अभी स्कूलों तक किताबें पहुंची ही नहीं हैं. इससे बच्चों की पढ़ाई या तो ठप है या फिर प्रभावित हो रही है.

नए एडमिशन नहीं हो रहे हैं

जिन स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं, वहां गिनती के बच्चे ही स्कूल आ रहे हैं. नए एडमिशन भी नहीं हो रहे हैं. मौजूद बच्चों में कितने नए सेशन में भी बरकरार रहेंगे, यह भी दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता. शर्त यह भी थोपी गई है कि किताबें उन्हीं बच्चों को दी जाएंगी, जो पिछले साल की पुरानी किताबों को वापस करेंगे.

इस साल स्कूलों में तकरीबन साढ़े सात करोड़ किताबों को बच्चों में बांटा जाना है. राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का दावा है कि तमाम स्कूलों में किताबें पहुंच चुकी हैं. उनका कहना है, 15 जुलाई तक सूबे के सभी स्कूलों में किताबें भेजने की कोशिश की जाएगी.

सरकार किताबों को समय पर बांटने में नाकाम क्यों?

वैसे, जानकारों का कहना है कि पूरी किताबें जुलाई महीना बीतने के बावजूद नहीं बंट सकेंगी. पिछले कुछ सालों के मुकाबले हालात इस बार कुछ बेहतर जरूर हुए हैं.

पर सवाल यह है कि विपक्ष के सियासी महिमामंडन की दलील देकर जो सरकार चुटकियों में इतिहास की किताबों पर पाबंदी लगा देती है, वही सरकार हर साल किताबों को समय पर बांटने में नाकाम क्यों हो जाती है?

पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस बार हालात कुछ बेहतर

इस बारे में शिक्षा विशेषज्ञ कैलाश चंद्र का कहना है कि किताबें नहीं होने से न सिर्फ पढ़ाई प्रभावित होती है, बल्कि स्टूडेंट और उनके अभिभावक के साथ ही टीचर्स भी परेशान होते हैं. बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते, और न ही नए एडमिशन होते हैं.

शिक्षक संघ से जुड़े हुए, जल्द रिटायर हो रहे शिक्षक विजय शर्मा के मुताबिक, सरकार को अगले सत्र से इस बारे में खास ध्यान देना चाहिए और किताबों को जून महीने में ही स्कूल भेज देना चाहिए. हालांकि, दोनों ने यह माना कि पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस बार हालात कुछ बेहतर हैं.

पहले तो किताबें बंटने में दो-दो महीने का समय लग जाता था.