राजस्थान में जिस संदिग्ध कफ सिरप को पीने के बाद बच्चों की तबीयत बिगड़ी और दो की मौत के दावे किए जा रहे हैं, वह राजस्थान की ही राजधानी जयपुर में बनती है. संदिग्ध सिरप बनाने वाली कंपनी के संस फार्मा की फैक्ट्री जयपुर के इंडस्ट्रियल एरिया में है. घटना के बाद से फैक्ट्री में ताला लगा हुआ है. 

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एबीपी न्यूज़ की टीम जब फैक्ट्री पहुंची तो पाया कि सरकारी सील के बजाय कंपनी ने खुद ही ताला डाल रखा है. जानकारी मिली है कि अधिकांश सामान भी वहां से हटा लिया गया है. हमारी टीम पड़ताल करते हुए कंपनी के मालिक वीरेंद्र कुमार गुप्ता के जयपुर के बनीपार्क इलाके में स्थित घर पर पहुंची. हमें घर पर भी कोई नहीं मिला. 

अब तक नहीं हुआ एक्शन

जानकारी के मुताबिक फैक्ट्री का संचालन और उत्पादन की निगरानी जनरल मैनेजर देवल कुमार गुप्ता करते थे. जानकारी के मुताबिक गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी भी इन्हीं के पास थी. हैरानी की बात यह है कि बच्चों की मौत के कई दिन बीत जाने के बाद भी अब तक दोनों पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई.

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सबूत मिटाने की कोशिश?

हमारी टीम ने कंपनी के मालिक से लेकर दूसरे जिम्मेदार लोगों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. इससे संदेह और गहरा हो गया कि कहीं सबूत मिटाने की कोशिश तो नहीं की जा रही? 

घटना के बाद सरकार ने जांच कमेटी बनाई और दवा के कई बैचों का वितरण रोक दिया. स्वास्थ्य विभाग का तर्क है कि सैंपल रिपोर्ट आने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाएगी. नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की टीम ने भी पानी और दवा के नमूने लिए हैं. 

स्वास्थ्य विभाग ने दी क्लीन चिट

वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत को लेकर क्लीन चिट देने का काम किया है. दावा किया गया है कि जिन बच्चों की मौत हुई है, उन्हें संदिग्ध सिरप लिखी ही नहीं गई थी. 

स्वास्थ्य तंत्र पर खड़े हो रहे सवाल

यह हादसा राजस्थान के स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. सरकारी टेंडरों में आखिर ऐसी कंपनियों को जगह क्यों दी जाती है जिनका रिकॉर्ड पहले ही संदिग्ध रहा है? विशेषज्ञों का कहना है कि गुणवत्ता जांच में ढीलाई देशभर में ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रही है. 

दिल्ली में 16 बच्चों की बिगड़ चुकी है तबीयत

जानकारी मिली है कि यही डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन वाली खांसी की सिरप 2021 में दिल्ली में 16 बच्चों की तबीयत बिगाड़ चुकी थी. इसके बावजूद कंपनी पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया. राजस्थान ड्रग कंट्रोलर का कहना है कि उन्हें दिल्ली की घटना की जानकारी थी, लेकिन यहां की क्वालिटी जांच में कोई खामी नहीं मिली. 

ठोस सबूतों के बावजूद क्यों मिली इजाजत?

अब बड़ा सवाल उठता है कि इतने ठोस सबूतों के बावजूद दवा को हरी झंडी आखिर कैसे दे दी गई? क्या सरकारी मशीनरी ने लापरवाही बरती या फिर कहीं दबाव में आकर फैसला हुआ?