Bundi News: इंसान अगर ठान ले तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है. आपने अपने आस-पास ऐसे कई उदाहण देखे होंगे. आज हम आपको ऐसे ही दो भाई-बहनों से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए सरकारी नौकरी पाने में सफलता हासिल की है. नैनवां के देई निवासी दो भाई-बहन बचपन से ही मूक-बधिर हैं. दोनों भाई-बहन न बोल सकते हैं और न सुन सकते हैं, लेकिन आज इनकी कामयाबी सब कुछ बोल रही है और सब को सुनाई और दिखाई भी दे रही है. दोनों का हाल ही में कनिष्ठ सहायक के पद पर चयन हुआ है.


बूंदी के नैनवां के देई में एक ऐसा परिवार हैं जिसमें 4 भाई-बहन हैं और हैरानी की बात ये हैं कि ये चारों भाई-बहन मूक बधिर हैं. आज दो भाई-बहनों का सरकारी नौकरी पर चहन होने से पूरा परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा है. दोनों के इस चलन से दिवाली पर परिवार की खुशियां दोगुनी हो गई हैं.


पिता करते के कपड़ों का व्यापार
दिव्यांग भाई सतीश जैन को नैनवां पंचायत समिति में तो बहन आशा जैन को तालेड़ा पंचायत समिति में कनिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्ति मिली है. दोनों ने दीपावली से दो दिन पूर्व ही कार्यभार संभाला है. सतीश (37) ने एमए बीएड के साथ कम्प्यूटर की शिक्षा ली है, वहीं, आशा (39) ने भी बीए बीएड कर रखी है. जब दोनों भाई-बहनों की एक साथ नियुक्ति के आदेश मिले तो परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. आश्चर्य की बात ये भी है कि इन्होंने सामान्य कॉलेज से ही शिक्षा हासिल की है. ये मूक बधिर स्कूल में नहीं पढ़े हैं. दिव्यांग के पिता देई निवासी महावीर जैन कपड़े का व्यापार करते हैं. वहीं मां सुलोचना गृहिणी हैं. महावीर जैन ने बताया कि सतीश और आशा से बड़ी दो बेटियां सरस्वती और आध्यात्मा भी मूक-बधिर हैं. चारों ही संतानों ने मूक-बधिर होने के बाद भी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया.


 कीबोर्ड पर दौड़ती हैं उंगलियां, चेहरे के भाव करते हैं मंत्रमुग्ध
दोनों भाई-बहन की नौकरी से पिता बेहद खुश हैं. आशा के पति भी मूक बधिर हैं और पंजाब नेशनल बैंक कोटा में कार्यरत हैं. ऐसे में आशा को कोटा के पास तालेड़ा में नियुक्ति दी गई है. वहीं सतीश को घर के पास नैनवा में नियुक्ति मिली है. दोनों भाई बहन मोबाइल पर वॉट्सएप के जरीए बात करते हैं और कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उनकी उंगलिया गोली की रफ्तार से चलती हैं. जो भी उन्हें देखता है मंत्रमुग्ध हो जाता है.


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