Bundi News: राजस्थान के बूंदी में चंबल नदी के मुहाने पर स्थित रोटेदा कस्बे में दशकों पुराना रियासतकालीन किला जिसे कि दुश्मनों की तोपें भी नहीं भेद सकती थी, जो उस समय का सुरक्षा कवच रहा लेकिन अब असुरक्षित हो गया है. सार संभाल के अभाव में किले की दो दीवारें तो पहले ही ढह गई थी और एक दीवार सोमवार को ढह गई. हालांकि किसी तरह की जानमाल की क्षति नहीं हुई हैं. फिर भी लोगों को इसके बचे हुए अंश के असमय गिरने से किसी अप्रिय घटना घटने की आशंका सताती रहती हैं. 


सालों पुराना है किला
इसकी सूचना मिलने पर उपखंड अधिकारी बलबीर सिंह व प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा. जहां हालातों का जायजा लेकर जहां सुरक्षा दीवार ढही है वहां बैरिकेट्ड लगाकर रास्ते को पूरी तरह से बंद कर दिया है ताकि हादसा ना हो. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह धरोहर वक्त की मार के घावों से जीर्ण शीर्ण होकर धराशाई होती जा रही है. समय के साथ ही इसके आसपास की मिट्टी बारिश में चंबल के उफान से कटती गई और यह किला पिछले 300 साल से मिट्टी पर खड़ा हुआ है. यहां से गुजरने वाले लोग इसे मिट्टी के किले के नाम से जानने लगे हैं. 


इतिहासकारों के मुताबिक किला तीन सौ साल से ज्यादा पुराना है. किले की दीवारों का प्लास्टर उखड़ कर परकोटे की दीवारें जख्मी हो चुकी है. स्थापत्य कला व पुरातत्व महत्व का बेजोड़ प्रतीक परकोटा अब पूर्ण रूप से धराशाही होने की कगार पर है. उधर लगातार कोटा बैराज से पानी छोड़े जाने के साथ ही चंबल नदी में उफान नजर आ रहा है. यहां रोटेदा, घाट का बराना सहित कई गांवों में प्रशासन में लोगों को अलर्ट रहने के निर्देश दिए हैं. 


एक बीघा जमीन पर बना है किला
किले का क्षेत्रफल लगभग एक बीघा है. इसे एक नजर देखने पर यह जमीन से 15 फीट की ऊंचाई तक मिट्टी पर खड़ा दिखाई देता है. उसके बाद 12 फिट ऊंचाई में किले की नींव दिखाई देती है. जिसके बाद किले की दीवार शुरू होती है. किला तीन मंजिला बना हुआ है.जिसके अंदर झरोखे व तिबारिया बनी हुई है. किले का मुख्य गेट अभी भी मजबूत है. अंदर इसमे बरामदे बने है.


किले के अंदर हैं मंदिर और मजार
वहीं किले के परकोटे में अंदर दीवारों के सहारे भगवान देवनारायण, अन्नपूर्णा माता मंदिर एंव सूफी संतों की मजार का चिल्ला वर्तमान में भी बना हुआ है. जहां लोग पूजा अर्चना कर मन्नते मांगते है. वहीं जैन मंदिर, जगन्नाथ मंदिर आदि की मूर्तियां वर्षो पूर्व चोर ले उड़े. वहीं परिसर में रजवाड़ों के समय का एक कुआं भी है, जो देख रेख के अभाव में ढका हुआ है. किले में एक सुरंग भी है.जिसका उपयोग शत्रु द्वारा पराजिता झेलने पर किया जाता था. 


राव अनिरुद्ध सिंह ने करवाया था निर्माण
इतिहासकार बताते हैं कि कापरेन, रोटेदा व पीपल्दा जागीर ऐसे ऐतेहासिक स्थल हैं जो अपने इतिहास की खुद गवाही देते है. यहां के गढ़ महल राव अनिरुद्ध सिंह ने बनवाए थे. ई.1748 में बूंदी के महाराव राजा उम्मेद सिंह जब गद्दी पर कायम हुए, तब छोटे भाई महाराजा दीपसिंह को कापरेन के साथ रोटेदा का किला एक लाख की सालाना जागीर में 27 गांवों सहित सन 1760 में दिया था.


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