Karauli Violence: करौली शहर में 2 अप्रैल को हिंदू नव संवत्सर (Nav Samvatsar 2079) पर भगवा रैली में अचानक से हुए पथराव और आगजनी की घटना के बाद भगदड़ और चीख-पुकार मच गई. शहर की दुकानों के शटर गिरने लगे, लोग घरों की ओर दौड़ने लगे. चारों तरफ अफरातफरी का माहौल बन गया. आग और पथराव से हर कोई जान बचाने के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ रहा था. अचानक करौली शहर के बीचोबीच राजपूती कपड़ों की दुकानदार मधुलिका जादौन (Madhulika Jadaun) 'देवी' के रूप में नजर आईं. 


हिंसा और दंगों के बीच 15 मुस्लिमों की बचाई जान


मधुलिका जादौन ने जान की परवाह न करते हुए घर में 15 मुस्लिम युवकों और तीन हिंदुओं को शरण देकर जिंदगी बचाई. करौली की मधुलिका जादौन ने हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बीच 15 मुस्लिम युवकों की जान बचाकर साबित कर दिया कि मानवता की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है. आपको बता दें कि 2 अप्रैल को पूरे दिन भीड़ ने राजस्थान के करौली शहर में दंगों को अंजाम दिया. दंगों में गलती किसकी थी, यह साबित करना हमेशा मुश्किल ही रहा है, लेकिन 48 वर्षीय मधुलिका जादौन ने का काम किसी चमत्कार से कम नहीं है.


करौली बाजार के एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आग लगने से धुआं भर गया. 18 की संख्या में दुकानदार और कर्मचारी शरण लेने के लिए पहुंचे. मधुलिका ने सभी लोगों को एक सुरक्षित कमरे में बिठाया. धुएं से खांस रहे लोगों को पंखा लगाकर पानी पिलाया और विश्वास दिलाया कि जबतक चाहें रह सकते हैं. अनहोनी की आशंका से भरे लोगों की आंखों में डर देखकर उन्होंने विश्वास दिलाया कि “यह हिंदुस्तान है और हम राजपूत हैं, हम लोगों की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं और हम इसे हमेशा करेंगे.” 


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मधुलिका जादौन ने गुस्साई भीड़ का किया मुकाबला


मधुलिका जादौन को करौली शहर में बाजार परिसर के बाहर गुस्साई भीड़ का सामना भी करना पड़ा. बाजार के बाहर जादौन के परिवार की कई दुकानें हैं. भीड़ में शामिल लोगों ने अंदर परिसर में घुसने की कोशिश की. लेकिन 48 वर्षीय मधुलिका ने सभी को दृढ़ता से रोका और कहा कि मैं किसी को अंदर नहीं जाने दूंगी. लोगों ने पूछा कि क्या यहां कोई छुपा है, उन्होंने कहा कि यहां कोई नहीं है. उन्होंने दंगाइयों को फटकारा और चले जाने को कहा. मधुलिका के पास शरण लेने वालों 15 मुस्लिम युवकों के साथ तीन हिंदू भाई भी थे. परिसर में एक कपड़े जूते की दुकान चलाते हैं और करीब तीस वर्षीय दानिश सड़क पर महिलाओं के कपड़ों की स्टॉल लगाता है.


अभी हाल मे ही उसने इसी परिसर में कपडों का शोरूम भी डाला है . जब शहर में दंगे की खबर मिली तो सब अपनी—अपनी दुकानों के शटर गिराते चले गए. दानिश ने बताया कि जब माहौल खराब हुआ तो हम लोग जल्दी से अपना सामान दुकान के अंदर रखकर ऊपर मधुलिका दीदी के यहां चले गए और दीदी ने हमको अपने घर के अंदर ले लिया. उस समय हम 15 मुस्लिम लोग और दो तीन हमारे हिंदू भाई भी साथ थे. इसके बाद तुरंत ही मधुलिका दीदी ने मॉल का चैनल गेट बंद करके ताला लगा दिया और हमको कहा कि आप शांत रहो. फिर हमको सेफ महसूस हुआ.


आधे घंटे बाद संजय सिंह आए और हमको पानी पिलाया और कहा कि आप लोग सेफ हो. उसके बाद हम वहां कमरे में ही बैठे रहे. इस दौरान घर और कई जगह से फोन भी आ रहे थे कि आग लग रही है तो हम बहुत डर रहे थे. कर्फ्यू लगने के बाद हम घर पहुंचे. किसी को अंदर नहीं आने दिया. मधुलिका दीदी का हमारे लिए किया गया काम बहुत सराहनीय था. आज हमारे पास शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं है. उन्होंने हमको नहीं लगने दिया कि हम मुस्लिम लोग हैं. 


परिसर में खानुउद्दीन की जूते की दुकान को दंगाइयों ने आग की भेंट चढ़ा दिया. उन्होंने कहा कि मधुलिका मेरी भांजी लगती है. उन्होंने कहा कि कितना भी शुक्रिया अदा कर लिया जाए कम है. उन्होंने मेरा बच्चा, मेरे भाई का बच्चा और दस 15 लड़के और सभी को उन्होंने सिटी मॉल मे रखा था क्योंकि भाग कर उधर ही गए थे. भीड़ के डर की वजह से उन्होंने हमारे बच्चों की जान बचाई और हमारी दुकान बचाई. मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं. उनका हम पर एहसान है. एक तरफ जातिवाद के नाम पर लूटा जा रहा है और दूसरी तरफ उसी धर्म के लोग हमारी जान, माल की रक्षा कर रहे हैं. अफसोस हो रहा है ऐसा दिन मालिक किसी को ना दिखाए. 


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