Rajasthan News: राजस्थान के जालोर (Jalore) जिले के ओडवाड़ा गांव में हाई कोर्ट (High Court) जोधपुर की ओर से जारी आदेश के बाद प्रशासन की ओर से चिन्हित किए गए अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई हुई. इस को लेकर पहले दिन चिन्हित 70 अतिक्रमण हटाए गए, जिसमें चारदीवारी तोड़ी गई, लेकिन किसी भी रहवासी के मकान को नहीं तोड़ा गया था. वहीं अब हाई कोर्ट ने ओड़वाड़ा मामले में स्थगन आदेश जारी करते हुए दस्तावेज जांच के आदेश दिए हैं. 


दरअसल पहले दिन की अतिक्रमण की कार्रवाई के बाद आहोर विधायक छगन सिंह राजपुरोहित गुरुवार (16 मई) को ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मिलने पहुंचे और मामले में अवगत कराया. उन्होंने सीएम के सामने कार्रवाई रोकने की बात रखी. ओड़वाड़ा मामले को लेकर कांग्रेस नेताओं ने भी ट्वीट कर राज्य सरकार को घेरा. वहीं शुक्रवार को कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत, राज्य मंत्री ओटाराम देवासी, विधायक छगन सिंह, बीजेपी संगठन मंत्री  सांवलाराम देवासी ओवाड़ा गांव पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया और लोगों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.


कांग्रेस और बीजेपी के नेता पहुंचे गांव
वहीं गुरुवार को कार्रवाई के दौरान काटे गए बिजली कनेक्शन को भी शुक्रवार को फिर से जोड़ा गया. इधर इस मामले को लेकर जिला कलेक्टर ने भी प्रेस कॉन्फेंस कर कहा कि किसी का मकान नहीं तोड़ा गया है. प्रशासन सर्वे करवाकर पता लगाने का प्रयास करेगा कि कोई परिवार बेघर न हो. अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद शुक्रवार को कांग्रेस की ओर से एक कमेटी का गठन किया गया. कमेटी ओड़वाड़ा गांव जाकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद लोगों से मिलकर उनका हाल जाना. इसमें पूर्व मंत्री सुखराम विश्नोई, जालोर से कांग्रेस के प्रत्याशी वैभव गहलोत, कांग्रेस महासचिव मोहन डागर, हरीश चौधरी, ललित बोरीवाल शामिल थे.


इस दौरान उन्होंने ओडवाड़ा में लोगों से मिलकर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के दौरान उनके साथ हुए व्यवहार की शिकायतें सुनी और नुकसान का जायजा लेकर हर संभव मदद का भरोसा दिया. वहीं ओड़वाड़ा गांव की पूर्व सरपंच प्रमिला राजपुरोहित मामले को लेकर कहा कि मैं 1994 में ओड़वाड़ा की सरपंच रह चुकी हूं. मैंने भी 12 पट्टे जारी किए, लेकिन मुझे यह भूमि ओरण की है इसकी जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि मैंने गलत किया है तो तत्कालीन तहसीलदार और पटवारी भी दोषी हैं. ओड़वाड़ा के पीड़ितों का कहना है कि हम इस जमीन पर पिछले करीब 50 वर्षों से रह रहे हैं. कई लोग कह रहे हैं कि हमारे पास ग्राम पंचायत के पट्टे भी है, इसके बावजूद कार्यवाही हुई है. अब हम चाहते हैं कि सरकार इसका कोई समाधान करें, ताकि अगामी समय  में कोई परेशानी नहीं हो.


हाई कोर्ट ने क्या कहा?
इस मामले को लेकर अब राजस्थान हाई कोर्ट ने शुक्रवार को जालोर के ओडवाड़ा गांव में अतिक्रमण हटाने पर रोक लगा दी है. जस्टिस विनीत माथुर ने आदेश जारी करते हुए प्रशासन को सबसे पहले दस्तावेजों का वेरिफिकेशन करने के लिए कहा है. कोर्ट ने साफ किया है कि जांच पूरी होने तक किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हटाया जाएगा. इस संबंध में अधिवक्ता श्याम पालीवाल ने बाबू सिंह और अन्य की ओर से हाई कोर्ट में पक्ष रखा गया था, जिसमें कहा गया था कि जिला प्रशासन ने बिना विधिक प्रक्रिया के बुलडोजर चलाया है. 


इस केस की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने पर अस्थाई रोक लगा दी. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्याम पालीवाल ने पैरवी करते हुए कहा कि हमारे पास 1930 से यहां रहने का प्रमाण है. इसके अलावा हमारे नाम पर पट्टा भी है, लेकिन जिला प्रशासन ने केवल पीएलपीसी के ऑर्डर के चलते एक तरफा कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी. जबकि हमारे दस्तावेजों का वेरिफिकेशन नहीं किया गया. तीन दशक से हम यहां रह रहे हैं, जिसके लिए हमें यहां जिला प्रशासन द्वारा ही पट्टा जारी किया गया था. केवल 91 का नोटिस जारी करते हुए यह पूरी कार्रवाई की गई, जो उचित नहीं थी.


दरअसल, ओडवाड़ा गांव पिछले 24 घंटे से सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड कर रहा है. गुरुवार सुबह सात बजे इस गांव में तहसीलदार 250 पुलिसकर्मी और पांच जेसीबी को लेकर अतिक्रमण हटाने पहुंच गए थे. इस दौरान ग्रामीणों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने साढ़े छह घंटे में 70 मकानों की दीवारें और गेर रहवासी ध्वस्त कर दिए. वहीं कई घरों के बिजली कनेक्शन काट दिए गए थे. इसके बाद जिला प्रशासन की टीम घरों से समान निकालने के लिए ग्रामीणों को 24 घंटों की मोहलत देकर वापस लौट गई. आज फिर एक्शन होने वाला था, लेकिन इससे पहले ही हाई कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने पर अस्थाई रोक लगा दी है.


(हीरालाल भाटी की रिपोर्ट)



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