Margaret Alva News: उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए एनडीए के बाद अब यूपीए ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा को अपना उम्मीदवार बनाया है. मार्गेट अल्वा विपक्ष के साझा रूप से प्रत्याशी होंगे. विपक्ष की ओर से मार्गेट अल्वा के नाम की घोषणा के बाद अब इस पद के लिए धनखड़ और आल्वा के बीच सीधा मुकाबला होगा. उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है 10 अगस्त को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल समाप्त होगा उससे पहले उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 6 अगस्त को होना है. मार्गेट अल्वा राजस्थान में 20वें राज्यपाल के रूप में पद सम्भाल चुकी हैं. 


इन पदों पर रह चुकी हैं मार्गरेट अल्वा


मार्गेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल 1942 को मैंगलोर, जिला- दक्षिण कनारा में हुआ था. मार्गेट अल्वा कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं आल्वा ने अगस्त 2014 में अपने कार्यकाल के अंत तक गोवा के 17वें राज्यपाल, गुजरात के 23वें राज्यपाल, राजस्थान के 20वें राज्यपाल और उत्तराखंड के चौथे राज्यपाल के रूप में पद सम्भालते हुए काम किया है. आल्वा कैबिनेट मंत्री के रूप में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने राजस्थान में पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल से पदभार ग्रहण किया, जो उस राज्य का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे. उन्होंने अपनी शिक्षा बी.ए., बी.एल., मानद डॉक्टरेट, एम.टी. कारमेल कॉलेज और राजकीय विधि महाविद्यालय बैंगलुरु (पूर्व नाम बंगलौर) कर्नाटक से प्राप्त किया.


वकालत और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कर चुकी हैं काम



राज्यपाल नियुक्त होने से पहले, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक वरिष्ठ नेता थीं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की संयुक्त सचिव रह चुकी हैं. 1999 में लोकसभा के लिए निर्वाचित होने से पूर्व  मार्ग्रेट आल्वा 1974 से निरंतर चार बार छः वर्ष की अवधि के लिए राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुईं. आल्वा की सास वायलेट अल्वा 1960 के दशक में राज्यसभा की स्पीकर थीं. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की मॉरिशस यात्रा, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सोवियत संघ यात्रा, कोपेनहेगन में आयोजित वैश्विक सामाजिक बैठक में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव के दल की और उपराष्ट्रपति के.आर. नारायणन की आस्ट्रेलिया यात्रा के प्रतिनिधिमण्डल की सदस्य रही हैं.



1984 की राजीव गाँधी सरकार में आल्वा को संसदीय मामलों का केन्द्रीय राज्य मंत्री बनाया गया. बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में युवा मामले और खेल, महिला और बाल विकास के प्रभारी मंत्री के दायित्व का निर्वाह किया. 1991 में कार्मिक, पेंशन, जन परिवेदना और प्रशासनिक सुधार (प्रधानमंत्री से सम्बद्ध) की केंद्रीय राज्य मंत्री बनायी गयीं, जहाँ उन्होंने सरकार को जनसामान्य तक पहुंचाने और प्रशासन के विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को आरंभ किया. कुछ समय के लिए उन्होंने विज्ञान और तकनीकी मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं.


संसदीय समिति में काम कर चुकी हैं


प्रतिष्ठित सांसद के रूप में 30 वर्षों की अवधि में भारतीय संसद की बहुत महत्त्वपूर्ण समितियों जैसे सार्वजनिक निकायों की समिति, (सी.ओ.पी.यू.), लोक लेखा समिति, (पी.ए.सी.), विदेश मामलों की स्थायी समिति, पर्यटन और यातायात, विज्ञान और तकनीकी में काम किया हैं. उन्होंने पर्यावरण  वन और महिला अधिकारों की चार महत्त्वपूर्ण समितियाँ- जैसे दहेज निषेध अधिनियम (संशोधन) समिति, विवाह विधि (संशोधन) समिति, समान पारिश्रमिक समीक्षा समिति और स्थानीय निकायों में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण हेतु 84वें संविधान संशोधन प्रस्ताव के लिए बनी संयुक्त चयन समिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया. 1999 से 2004 तक महिला सशक्तीकरण की संसदीय समिति की सभापति भी रहीं.



आल्वा 1986 में यूनिसेफ द्वारा दक्षिण एशिया के बच्चों पर हुई प्रथम कांफ्रेंस और महिला विकास पर हुई सार्क देशों की मंत्री स्तर की बैठक की सभापति निर्वाचित हुईं. जिसमें बालिकाओं की स्थिति सुधार पर चिन्तन हुआ. परिणामस्वरूप  सार्क देशों के शासनाध्यक्षों ने 1987 को "बालिका वर्ष" घोषित किया. 1989 में भारत सरकार ने महिलाओं के विकास की विस्तृत रणनीति की भावी योजना का मसौदा तैयार करने के मूल समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वह मसौदा आज भी केन्द्र और राज्य सरकारों के नीति निर्धारण का मार्ग दर्शक बना हुआ है. 


महिलाओं के मुद्दे पर विदेशों में भी काम किया है


महिला दशक के दौरान संयुक्त राष्ट्र के सभी महत्त्वपूर्ण सम्मेलनों में आल्वा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया है. 1986 में शांति के लिए विश्व महिला सांसदों के प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्ष भी बनीं. ऐतिहासिक "रीगन-गोर्बोचोव समिट" की वांशिगटन बैठक के प्रतिनिधिमंडल की सदस्य रही हैं. महिलाओं का निर्णय लेने में योगदान और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर महिला दशक के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए विशेषज्ञ दल में संयुक्त राष्ट्र के महिला प्रभाग ने उन्हें 1989 में आमंत्रित किया.


1992 में दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा के विरुद्ध बैठक में उन्हें ESCAPE का अध्यक्ष चुना गया और 1994 में ESCAPE के द्वारा बैंकाक में आयोजित बैठक में प्रख्यात व्यक्तित्व के रूप में आमंत्रित किया गया. 1976 में संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा में राष्ट्रीय प्रतिनिधिमण्डल की सदस्य रहीं. 1997 में अन्तरराष्ट्रीय विकास समिति (रोम) के संचालन परिषद कार्यकारणी में तीन वर्ष तक निर्वाचित सदस्य रहीं. वो काहिरा कांफ्रेंस की पालना में बने जनसंख्या नीतियों के निर्माण की पुनश्चर्या के लिए UNFPA के विशेष सलाह-समूह की सदस्य रही हैं.


1997 में कैमरून के राष्ट्रीय चुनावों में कॉमनवैल्थ के पर्यवेक्षक दल में रही हैं. संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं की परिस्थिति पर बने आयोग की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने 1999 में यूनिसेफ द्वारा बाल अधिकारों की संहिता के मसौदे को तैयार करने के लिए बनाए गए विशेषज्ञ समूह में सेवाएं दी हैं. वे बालश्रम की राष्ट्रीय समिति और नेशनल चिल्ड्रन बोर्ड की आप उप-सभापति रही हैं.


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