Swami Kailashanand Giri: पुराणों को सुनी सुनाई बातों के आधार पर लिखे जाने और कानूनी तौर पर इसे सीधे सबूत के तौर पर मानने से इंकार करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर देशभर के संत महात्माओं ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए इस पर फिर से विचार करने का सुझाव दिया है.
इसी कड़ी में निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने भी फैसले से असहमति जताई है और कहा है कि पुराणों में लिखी हुई बातें कही-सुनी हुई नहीं, बल्कि पूरी तरह प्रमाणिक हैं. उन्होंने कहा कि पुराणों में लिखी हुई बातों के आधार पर ही हम भगवान को मानते हैं. उनकी पूजा करते हैं. भगवान राम और कृष्ण के स्वरूप के दर्शन करते हैं.
स्वामी कैलाशानंद गिरि ने जयपुर में एबीपी न्यूज़ से की गई खास बातचीत में इस मुद्दे पर कहा कि लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते संविधान के साथ ही देश की अदालतों के फैसले का सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है, लेकिन पुराणों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की दलीलों से कतई सहमत नहीं हुआ जा सकता. पुराण सिर्फ कागज पर लिखे हुए शब्द नहीं हैं, बल्कि यह करोड़ों सनातनियों की आस्था का आधार भी हैं. 'पुराण पूरी तरह प्रमाणित और वैज्ञानिक है- कैलाशानंद गिरि स्वामी कैलाशानंद गिरि के मुताबिक सुनी हुई बातों को भी अगर प्रमाणिक तौर पर परखने के बाद लिखा जाता है तो उसका वैज्ञानिक महत्व होता है. ऐसे में उस पर सवाल खड़ा करना कतई उचित नहीं है. पुराण पूरी तरह प्रमाणित और वैज्ञानिक हैं. स्वामी कैलाशानंद गिरि के मुताबिक जज को अपने विवेक के आधार पर फैसला लेने का पूरा अधिकार होता है, लेकिन उनकी जिम्मेदारी लोगों के भरोसे को कायम रखने की भी होती है. हाईकोर्ट ने अर्जी को कर दिया खारिज गौरतलब है कि मथुरा के मंदिर-मस्जिद विवाद में श्री जी राधा रानी को पक्षकार बनाए जाने की सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रीना एन सिंह की अर्जी पर अंतरिम फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुराणों के सुनी सुनाई बातों के आधार पर लिखे होने की बात कही थी और पुराणों में दी हुई कथा को कानूनी तौर पर सीधा सबूत मानने से इंकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने पुराणों पर दी हुई अपनी दलील के आधार पर अधिवक्ता रीना एन सिंह की अर्जी को खारिज कर दिया.