Lord Shiva Temple: देश प्रदेश में शिव के अनेक प्राचीन और आधुनिक मंदिर है जहां शिव अपने विराट स्वरूप में हैं तो कहीं पूरे परिवार के साथ विराजते हैं, कहीं शिव की महिला मंडल का दृश्य है तो कहीं शिव गहराइयों में अपने दर्शन देते हैं. कहीं अर्धनारेश्चवर हैं तो कहीं शिव पार्वती के मंदिरों में शिव की पूजा अर्चना होती है. लेकिन कोटा में एक ऐसा शिव मंदिर हैं जिसमें शिव के साथ उनकी पुत्री विराजती हैं. इस अनूठे मंदिर के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है. यही नहीं इस मंदिर की कई खासियत हैं जो इसे और भी महत्वपूर्ण बना देती हैं. 


सातवीं शताब्दी में हुआ था इसका निर्माण 
भगवान शिव इस मंदिर में अपने पूरे परिवार के साथ विराजते हैं. इसका निर्माण सातवी शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर में भगवान भालेनाथ की पुत्री अशोकासुंदरी के दर्शन भी लोगों के जीवन में खुशहाली लाते हैं. इसके साथ ही यहां उनकी पहली पत्नी माता सती भी विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी के अनुसार ये मंदिर करीब 1500 साल पहले मौर्य शासन में 738 वीं शताब्दी में बनाया गया था. यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है. 


भरत भी यहां पैदा हुआ जिससे भारत का नाम 
मंदिर की वंशानुगत पूजा अर्चना और सेवा से जुड़े महंत श्याम गिरी गोस्वामी का कहना है कि पुरानी मान्यता यह है कि मंदिर परिसर की जगह पर ऋषि कर्ण का आश्रम हुआ करता था. इस आश्रम में एक शकुंतला नाम की कन्या रहती थी. उसकी उत्पत्ति विश्वामित्र की तपस्या भंग करने आई मेनका से हुई थी. मेनका इंद्रलोक चली गई, जबकि विश्वामित्र ने इस बालिका को ऋषि कर्ण के आश्रम में छोड़ दिया था. युवावस्था में इस आश्रम में राजा दुष्यंत पहुंचे थे. यहां पर उन्होंने शकुंतला से गंधर्व विवाह किया और उसके माध्यम से ही पुत्र भरत का जन्म हुआ. उसके नाम से ही देश का नाम भारत हुआ है. भरत के बाद शांतुन, भीष्म, कौरव व पांडव हुए. कौरव पांडव की पिछली पांचवी पीढ़ी से इस मंदिर का इतिहास जुड़ा हुआ है. कर्ण ऋषि के आश्रम होने के चलते ही इसका नाम बदलते हुए कंसुआ हो गया.


यहां सभी प्रतिमाएं 1500 साल पहले की 
इस मंदिर की प्राचीनता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां लगा हुआ शिलालेख कुटिला लिपि में लिखा हुआ है, जिस पर मंदिर का इतिहास है. महंत श्याम गिरी का कहना है कि कर्ण ऋषि आश्रम में संवत 738 यानी कि करीब 1500 साल पहले मौर्य काल के दौरान राजा शिवगण के अधीन आ गया था. इसमें ही मंदिर का निर्माण करवाया गया है. वर्तमान में मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1972 में अपने अधीन कर लिया और तब से उन्हीं के अधीन यह मंदिर है. यहां पर पुरातत्व विभाग का स्टाफ मॉनिटरिंग रखता है.  मंदिर परिसर में ही गार्डन, कुंड, भैरव मंदिर, हनुमान की प्रतिमा और डेढ़ दर्जन शिवलिंग बने हुए हैं. 
 
मंदिर की यह है चार खासियत
1. ये विश्व का अनोखा मंदिर है, जहां पर शंकर भगवान अपने पूरे परिवार के साथ विराजित हैं. इनमें शंकर भगवान के साथ मां पार्वती, पुत्र गणेश व कार्तिकेय, पहली पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री देवी सती और पुत्री अशोकासुंदरी शामिल हैं. यह सभी भगवान की प्रतिमा अलग-अलग हैं. साथ ही सभी मंदिर स्थापना के समय की ही है.


2. मंदिर की बनावट और स्थापना इस तरह की है, जब भी सूर्य की पहली किरण आती है तब वह मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शंकर का अभिषेक करती है. ऐसा उत्तरायण और दक्षिणायन दोनों समय होता है.


3. मंदिर के गर्भ गृह में तीन नंदी विराजे हुए हैं. इनमें एक विशाल नंदी मंदिर में प्रवेश करते ही गर्भ गृह में विराजित हैं. दूसरे नंदी पर भगवान शंकर विराजे हुए हैं. वहीं तीसरे नंदी भगवान शंकर की प्रतिमा और शिवलिंग के बीच में स्थित हैं. गर्भ गृह में तीन नंदी भी दुनिया के किसी भगवान शिव के मंदिर में नहीं हैं.


4. मंदिर के पुजारी महंत श्याम गिरी गोस्वामी के अनुसार भगवान शंकर की प्रतिमा भी अनूठी है. इसमें भगवान नंदी पर विराजे हुए हैं और उनकी जांघ पर ही माता पार्वती विराजी हुई हैं, जो शंकर भगवान को निहार रही हैं. जबकि शंकर भगवान मंदिर के परिसर में बने शिवलिंग की जलाधारी को देख रहे हैं.


यहां साक्षात प्रकट हुए थे महादेव
महंत श्यामगिरी का कहना है कि यहां भक्तों की रक्षा के लिए भगवान साक्षात प्रकट हुए थे. मंदिर जब बना था तब कोटा शहर नहीं बसा था. करीब डेढ़ सौ साल पहले भी यह पूरा इलाका जंगल जैसा ही था. यहां जंगली जानवरों का खतरा हुआ करता था. राजा महाराजा भी तांगे से ही यहां पर आया करते थे और उनकी सवारियां भी दोपहर में ही पूजा-अर्चना के लिए पहुंचती थी. मंदिर परिसर में अलग-अलग जगह पर शिवलिंग बने हुए हैं. 


ऐसे करीब डेढ़ दर्जन शिवलिंग अलग-अलग जगह पर विराजित हैं. मंदिर परिसर में ही भैरव नाथ का बड़ा मंदिर बना हुआ है. इसमें एक आदम कद मूर्ति भी विराजित है. पुजारी महंत अनिल गिरी गोस्वामी का कहना है कि यह हाड़ौती का सबसे बड़ा और प्राचीन भैरव नाथ का मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना शंकर भगवान के मंदिर के साथ-साथ ही हुई है. बाबा भैरवनाथ इस पूरे परिसर के कोतवाल के रूप में विराजे हुए हैं.


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