मशहूर कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर की पिंक सिटी जयपुर में हो रही भागवत कथा में सिर्फ तिलकधारियों को ही इंट्री दी जा रही है. कथास्थल के गेट पर ही जगह-जगह पोस्टर लगाकर लिख दिया गया है, नो तिलक-नो एंट्री. जो लोग तिलक लगाकर नहीं आ रहे हैं, उनके लिए गेट पर ही व्यवस्था की गई है. व्यवस्था से जुड़ी कई महिला सेवक हाथों में थाली लिए खड़ी रहती हैं. जो लोग तिलक लगाए बिना आते हैं, उन्हें गेट पर ही तिलक लगा दिया जाता है.

Continues below advertisement

इसके साथ ही पंडाल में भी कई जगहों पर चेकिंग की जाती है. अगर कोई व्यक्ति मेन गेट को पार कर किसी तरह अंदर आ जाता है, तो भी उसे रास्तों पर तिलक लगाया जाता है. पंडाल में अलग-अलग जगह बैठे हुए श्रद्धालुओं पर भी नजर रखी जाती है. अगर किसी ने तिलक को पोंछ दिया है तो उसे वहां फिर से तिलक लगा दिया जाता है. पंडाल में कोई भी व्यक्ति बिना तिलक के नहीं रह सकता है.

'तिलक सनातन की परंपरा'

इस बारे में कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का कहना है कि तिलक सनातन की परंपरा है और इसे लगाने से सकारात्मक ऊर्जा आती है. इसके साथ ही तिलक लगाकर वही व्यक्ति कथा पंडाल में प्रवेश करेगा, जिनकी आस्था सनातन धर्म में होगी. कई बार देखा जाता है कि कथा और डांडिया पंडाल में बहन बेटियों पर बुरी नजर रखने वाले कई लोग गलत इरादे से आ जाते हैं. ऐसे लोगों पर अंकुश लगाना और बहन बेटियों की सुरक्षा करना सभी की जिम्मेदारी है.

Continues below advertisement

'कई बार असहज हो जाती हैं महिलाएं'

देवकीनंदन महाराज का कहना है कि सनातनी बहन बेटियों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता. वैसे पंडाल में आने वाली महिला श्रद्धालु इसे पूरी तरह से ठीक बता रही हैं. उनका कहना है कि कई बार उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है. अब वह ज्यादा आत्मविश्वास के साथ पंडाल में आकर कथा का श्रवण कर सकेंगी. उन्हें इस बात का पूरा भरोसा रहेगा कि अगल-बगल बैठे लोग उनके ही सनातनी भाई हैं और वह उन्हें गलत नजर से नहीं देखेंगे.

'इसे धार्मिक नजरिए से न देखें'

दावा किया जा रहा है किसी भी कथा पंडाल में तिलक के बिना एंट्री बैन किए जाने का यह पहला मामला है. कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का कहना है कि इसे कतई धार्मिक नजरिये से नहीं देखना चाहिए. ना ही इसके कोई सियासी मायने निकालना चाहिए. यह फैसला समय की जरूरत के हिसाब से लिया गया है. उन्होंने यह भी कहा है कि जिनकी सनातन में आस्था नहीं है और वह दूसरे धर्म के लोग हैं, उन्हें आने की जरूरत भी नहीं है. 

बहरहाल कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का नो तिलक नो एंट्री का स्लोगन चर्चा का सबब बना हुआ है. सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर खूब बहस हो रही है. हालांकि ज्यादातर लोग इसे जरूरी बता रहे हैं और इसका समर्थन भी कर रहे हैं.