राजस्थान के जैसलमेर में मेघा गांव के पास तालाब के किनारे जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म मिले हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अभी जो सतह के बाहर दिख रहा है, वो जुरासिक काल के डायनासोर की रीढ़ की हड्डी हो सकती है. बाकी का पार्ट जमीन में 15 से 20 फीट नीचे है. जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया का दावा है कि जैसलमेर के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा कंकाल मिला है. 

जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, हजारों साल पहले जैसलमेर समुद्र का किनारा रहा था, जहां डायनासोर खाने की तलाश में आते थे. ऐसे में यहां इनके जीवाश्म मिल रहे हैं. अब जियोलॉजिकल सर्वे की टीम जांच करेगी. जीवाश्म कितना पुराना है? किस जानवर का है? ऐसे सवालों के जवाब जांच के बाद ही मिल पाएंगे.

जुरासिक काल का जीव होने का अंदाजा

जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया ने बताया, ''2 दिन पहले ग्रामीणों को जीवाश्म मिले तो वे चौंक गए. इसके बाद उन्होंने फतेहगढ़ प्रशासन को इसकी जानकारी दी. जैसलमेर प्रशासन ने इसकी सूचना हमें दी. उसके बाद हम फतेहगढ़ उपखंड क्षेत्र के मेधा गांव पहुंचे. प्राथमिक जांच करने पर यह जुरासिक काल का होने का अंदाजा लगा है. यानी ये डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव की हड्डियों का कंकाल हो सकता है. अगर यह किसी अन्य जानवर की हड्डियां होती तो इसे अन्य मांसाहारी जानवर खा सकते थे.''

शोध करने वालों को किया जाएगा आमंत्रित

उन्होंने आगे कहा, ''ये कंकाल सुरक्षित हैं तो ये जीवाश्म बनने की प्रक्रिया में है और जम गया है. ऐसे में यह हजारों साल पुराना होने का अंदाजा है. इसके संरक्षण और शोध की आवश्यकता है. प्रशासन के माध्यम से जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लिखा जाएगा. इसके साथ ही शोध करने वालों को भी आमंत्रित किया जाएगा ताकि वे इसकी जांच कर हकीकत बता सकें. 

डॉ. इणखिया ने ये भी बताया, ''जीवाश्म मिलना तो आम है. इसके साथ स्केलेटन मिलने से यह माना जा रहा है कि यह लाखों-करोड़ों साल पुराने अवशेष हो सकते हैं. ये किसी उड़ने वाले डायनासोर का हो सकता है, जिसकी लम्बाई करीब 20 फीट या उससे भी ज्यादा हो. 2023 में जेठवाई पहाड़ी के पास ही मॉर्निंग वॉक के दौरान एक अंडे का जीवाश्म मिला था. यह लाखों वर्ष पुराने किसी अंडे का अवशेष था. 

थईयात की पहाड़ियों में भी डायनासोर के मिले थे निशान

इससे पहले थईयात की पहाड़ियों में भी डायनासोर के पदचिन्हों के निशान मिले थे, जिसे बाद में कोई चुराकर ले गया. जैसलमेर शहर में जेठवाई की पहाड़ी, यहां से 16 किलोमीटर दूर थईयात और लाठी को 'डायनासोर का गांव' कहा जाता है. इसकी वजह है कि इन जगहों पर ही डायनासोर होने के प्रमाण मिलते हैं. जेठवाई पहाड़ी पर पहले माइनिंग होती थी. लोग घर बनाने के लिए यहां से पत्थर लेकर जाते थे. 

ऐसे ही थईयात और लाठी गांव में सेंड स्टोन के माइनिंग एरिया में डायनासोर के जीवाश्म मिलते हैं. तीनों गांवों में ही माइनिंग से काफी सारे अवशेष तो नष्ट हो गए थे. जब यहां डायनासोर के जीवाश्म मिलने लगे तो सरकार ने माइनिंग का काम रुकवा दिया. अब तीनों जगहों को संरक्षित कर दिया गया है.