Rajasthan Protest Against Right To Health Bill: आईएमए के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. शरद कुमार अग्रवाल ने 'राइट टू हेल्थ बिल' का विरोध किया है. कोटा में उन्होंने कहा कि राजस्थान में निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर हानिकारक और विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा. शरद कुमार ने बिल को किसी भी सूरत में लागू होने योग्य नहीं बताया. उन्होंने डॉक्टरों को परेशानी की आशंका जताई. उन्होंने बताया कि बिल डॉक्टरों के खिलाफ सजा का प्रावधान है.
राजस्थान से डॉक्टरों का पलायन हो जाएगा. बिल में सजा के खिलाफ अपील करने का प्रावधान नहीं है. संविधान भी अपील करने का अधिकार देता है. इमरजेंसी की भी परिभाषा नहीं साफ की गई है. उन्होंने कहा कि मरीज के लिए बुखार इमरजेंसी हो सकता है. डॉक्टरों के लिए नहीं है. बिल सरकारी डॉक्टरों के लिए भी व्यावहारिक नहीं है.
राजस्थान में 11 फरवरी को चिकित्सा सेवाएं होंगी ठप
डॉ. शरद ने बिल में संशोधन करने की मांग की. उन्होंने बताया कि सरकार जल्दबाली में बिना सोचे समझे बिल लाई है. सरकार अपनी जिम्मेदारी निजी अस्पतालों पर थोपना चाहती है. डॉ. शरद ने कहा कि निजी अस्पतालों में आपातकालीन प्रसूति उपचार सहित मुफ्त आपातकालीन उपचार करना अनिवार्य है. बिल में भुगतान प्रक्रिया का उल्लेख नहीं किया गया है. एमबीबीएस डॉक्टर प्रसूति या हार्ट अटैक के मरीज का इलाज कैसे करेगा.
उन्होंने चेताया कि बिल में बदलाव नहीं होने पर सरकार को विरोध झलना पड़ेगा. कोटा आईएमए अध्यक्ष डॉ आरपी मीणा और सचिव डॉ अखिल अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान में 11 फरवरी को चिकित्सा सेवाएं बंद रखकर बिल का विरोध किया जाएगा. अस्पताल के साथ क्लिीनिक और नर्सिंग होम नहीं खुलेंगे.
आईएमए ने 'राइट टू हेल्थ बिल' का किया विरोध
अखिल अग्रवाल ने बताया कि सभी अस्पतालों में सड़क दुर्घटना के मरीजों को मुफ्त परिवहन, मुफ्त इलाज और मुफ्त बीमा कवरेज प्रदान करना व्यावहारिक नहीं है. निजी अस्पतालों में मुफ्त ओपीडी और इलाज करना अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन राशि भुगतान को स्पष्ट नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि सरकार का दायित्व है कि भूखे को खाना खिलाए. इसका मतलब ये नहीं कि फाइव स्टार में खाना खिलाया जाए.
आईएमए के पूर्व सचिव डॉ. अमित व्यास ने कहा कि सरकार राइट टू हेल्थ बिल बिना तैयारी के लाई. बिल की तैयारी के वक्त डॉक्टरों की राय नहीं ली गई. कमेटी में भी किसी डॉक्टर को शामिल नहीं किया गया है. उन्होंने राइट टू हेल्थ बिल को चुनावी है. रोगियों और तीमारदारों की हिंसा के लिए सजा का प्रावधान नहीं है. बिल को लागू नहीं किया जाना चाहिए. संशोधन नहीं होने पर प्रदेश के डॉक्टर विरोध करेंगे.