जोधपुर असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक दशहरा महोत्सव गुरुवार (2 अक्टूबर) को सूर्यनगरी जोधपुर में हर्षोल्लास और परंपरागत धूमधाम के साथ मनाया गया. नगर निगम जोधपुर की ओर से रामलीला मैदान में आयोजित इस भव्य आयोजन में 70 फीट ऊंचे रावण के साथ मेघनाद, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और ताड़का के पुतलों का भी दहन किया गया.

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हर साल की तरह इस बार भी रावण दहन में नई झलक देखने को मिली. इस बार रावण को नीले रंग की अचकन और पारंपरिक जोधपुरी जूती पहनाई गई थी. इससे जोधपुर की सांस्कृतिक पहचान को मंच पर दर्शाया गया. दर्शक रावण की इस अनूठी वेशभूषा को देखते ही रह गए.

रिमोट से हुआ रावण दहन

गोधूलि बेला में जैसे ही रावण दहन का समय आया, हजारों की भीड़ रामलीला मैदान में उमड़ पड़ी. इस बार परंपरागत तरीके से तीर चलाकर दहन करने के बजाय रिमोट कंट्रोल का इस्तेमाल किया गया. जैसे ही रिमोट का बटन दबाया गया, रावण के अंदर लगे पटाखे एक-एक कर धमाकों के साथ फूटने लगे. रावण का अहंकार चकनाचूर हो गया और देखते ही देखते मेघनाद, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और ताड़का के पुतले भी जलकर राख हो गए. आसमान आतिशबाज़ी से चमक उठा और पूरा मैदान “जय श्रीराम” के नारों से गूंज उठा.

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रामलीला मैदान खचाखच भरा

कार्यक्रम को देखने के लिए रामलीला मैदान में हजारों लोग मौजूद रहे. बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग – सभी इस मौके पर बड़े उत्साह से शामिल हुए. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व ने लोगों को एकजुट किया और हर किसी ने उल्लासपूर्वक विजयादशमी का उत्सव मनाया.

विशिष्ट अतिथियों की मौजूदगी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व महाराजा गज सिंह रहे. वर्षों से जोधपुर में होने वाले रावण दहन में उनकी उपस्थिति परंपरा रही है. इस बार भी उनके हाथों से रावण दहन के लिए तीर चलाया गया, जिसे देखकर दर्शकों ने तालियों से स्वागत किया.

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. इस दौरान उन्होंने कहा, "दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है. रावण दहन केवल प्रतीक मात्र नहीं, बल्कि यह समाज में व्याप्त अहंकार, अन्याय और असत्य के अंत का प्रतीक है."

अखाड़ों का प्रदर्शन और राम की सवारी

दशहरे के इस भव्य आयोजन में स्थानीय अखाड़ों के खिलाड़ियों ने करतब दिखाए. तलवारबाज़ी, लाठी और व्यायाम के अद्भुत दृश्य देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए. इसी बीच भगवान श्रीराम की भव्य सवारी भी रामलीला मैदान पहुंची. श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का वेश धरे कलाकारों की उपस्थिति ने वातावरण को पूर्णत: धार्मिक और उत्सवी बना दिया.