राजस्थान के अंता विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को हराकर एक महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है. यह जीत कांग्रेस के लिए आसान नहीं मानी जा रही थी, क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था. इसके बावजूद, आज जब चुनावी नतीजे सामने आए, तो कांग्रेस की जीत का अंतर 15,612 वोटों का रहा.
निश्चित रूप से ये नतीजे चौंकाने वाले हैं, लेकिन इस जीत के पीछे की सियासी कहानी एक अलग ही "संयोग" या "समीकरण" की ओर इशारा कर रही है. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि जिसने भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (PCC) गोविंद सिंह डोटासरा पर व्यक्तिगत हमले किए, उसे सियासी मैदान में नुकसान उठाना पड़ा है.
क्या है 'डोटासरा संयोग'?
यह चर्चा अंता उपचुनाव से और तेज हो गई है. बताया जा रहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा, गोविंद सिंह डोटासरा पर लगातार व्यक्तिगत बयान दे रहे थे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन बयानों के चलते किसान वर्ग में नाराजगी पैदा हुई, जिसका सीधा खामियाजा नरेश मीणा को भुगतना पड़ा और वे चुनाव हार गए. हालांकि, यह पहली बार नहीं है. पिछले कुछ चुनावों में ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं:
1. राजेंद्र राठौड़ (बीजेपी): यह सिलसिला 2023 के विधानसभा चुनावों से शुरू हुआ. बीजेपी के कद्दावर नेता और लगातार 7 चुनाव जीतते आ रहे राजेंद्र राठौड़ और गोविंद सिंह डोटासरा के बीच चुनाव के समय तीखी व्यक्तिगत बयानबाजी हुई. नतीजा यह निकला कि जो राजेंद्र राठौड़ सात बार से अजेय थे, वे बुरी तरह चुनाव हार गए. इस हार के चर्चे आज भी सियासी गलियारों में होते हैं.
2. किरोड़ी लाल मीणा (बीजेपी): बात यहीं खत्म नहीं हुई. विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में सात सीटों पर उपचुनाव हुए. इन चुनावों में भी PCC चीफ गोविंद सिंह डोटासरा से अदावत रखने वाले बीजेपी के कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा अपने बड़े भाई जगमोहन मीणा तक को नहीं जितवा पाए. यह हार तब हुई जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और किरोड़ी लाल खुद कैबिनेट मंत्री हैं.
3. हनुमान बेनीवाल (RLP): ताजा उदाहरण 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद का है. हनुमान बेनीवाल इंडिया गठबंधन के सहयोगी के तौर पर नागौर से सांसद बने. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने डोटासरा को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी. जब खींवसर सीट पर उपचुनाव हुए, तो कांग्रेस आलाकमान ने RLP से गठबंधन नहीं किया और अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव हार गईं.
अंता ने चर्चा को दी हवा
अब अंता सीट पर मिली जीत के बाद सोशल मीडिया पर यह चर्चा जोरों पर है कि डोटासरा पर व्यक्तिगत हमला करना राजनीतिक रूप से महंगा पड़ रहा है. भले ही यह केवल एक संयोग हो, लेकिन राजेंद्र राठौड़, किरोड़ी लाल मीणा, हनुमान बेनीवाल और अब नरेश मीणा जैसे कद्दावर नेताओं को इस "संयोग" के चलते सियासी नुकसान उठाना पड़ा है.