Haryana News: हरियाणा पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन (HPHC) के एक आदेश को रद्द करते हुए पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति जिसने शारीरिक रूप से कक्षाओं में भाग नहीं लिया और व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है उसे इंजीनियर नहीं कहा जा सकता है. यह आदेश कोर्ट ने HPHC के एक कर्मचारी को कार्यकारी इंजीनियर के पद पर प्रमोशन देने के मामले में दिया. दरअसल कर्मचारी ने डिस्टेंस एजुकेशन मोड के माध्यम से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की थी.


न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल की बेंच ने कहा, यह स्वीकार करना मुश्किल है कि डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से इंजीनियरिंग की डिग्री फिजिकल मोड के माध्यम से किए गए पाठ्यक्रम के बराबर होगी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई में थ्योरेटिकल कॉन्सेप्ट को पढ़ाया जाता है जिन्हें बाद में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के माध्यम से प्रैक्टिस में लाया जाता है. एक व्यक्ति जिसने शारीरिक रूप से कक्षाओं में भाग नहीं लिया है और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग नहीं किया है, उसे इंजीनियर नहीं कहा जा सकता है. यदि हम डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से प्राप्त ऐसी डिग्रियों को स्वीकार करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब एमबीबीएस की पढ़ाई भी डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से होने लगेगी, जिसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे.


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क्या कहा याचिकार्ता ने


बेंच नरेश कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी और एक याचिकाकर्ता ने 18 नवंबर, 2019 के आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसके तहत विनोद रावल को कार्यकारी अभियंता (सिविल) के पद पर प्रमोट किया गया था. याचिकाकर्ताओं ने वकील अनुराग गोयल के माध्यम से तर्क दिया कि रावल को हरियाणा सर्विस ऑफ इंजीनियर्स, ग्रुप-ए, लोक निर्माण (भवन और सड़क) विभाग अधिनियम, 2010 की धारा 6 (ए) (परंतु) के उल्लंघन में कार्यकारी अभियंता के रूप में प्रमोट किया गया था. जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने वाला व्यक्ति प्रमोशन के लिए पात्र नहीं होगा.




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