Haryana News: अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के अलावा हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) को लेकर भी राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई है. कांग्रेस (Congress) में कई गुट होने का दावा करने वाली बीजेपी (BJP) के लिए पिछले कुछ समय से पार्टी के ही एक नेता सिरदर्द बनते दिखे रहे हैं. यही नहीं उनके बयानों से बीजेपी और जननायक जनता पार्टी (JJP) के गठबंधन के भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं. उनके बयानों से ऐसा लगता है कि वे बीजेपी से नाखुश चल रहे हैं. शायद यही वजह है कि वह खुले मंच से बीजेपी और उनकी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते रहते हैं. ये नेता कोई और नहीं, चौधरी बीरेंद्र सिंह (Chaudhary Birender Singh) हैं.


बीरेंद्र सिंह ने बीते सोमवार को कहा कि यदि बीजेपी-जजपा गठबंधन जारी रहा तो वह पार्टी छोड़ देंगे. उन्होंने जजपा पर राज्य में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया और कहा कि अगर बीजेपी सोचती है कि जजपा अगले साल के चुनाव में गठबंधन के वोट ले सकती है, तो वे गलत हैं. जजपा को अपने वोट भी नहीं मिलने वाले हैं. उन्होंने कहा, "अगर बीजेपी-जजपा का गठबंधन जारी रहा तो बीरेंद्र सिंह नहीं रहेगा, ये बात साफ है." उन्होंने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि जजपा के एक बड़े नेता ने लोगों को इतना बड़ा धोखा दिया है, जितना हरियाणा के किसी अन्य नेता ने नहीं दिया.


'बीजेपी को अकेले लड़ना चाहिए चुनाव'


यह पहला मौका नहीं है जब बीरेंद्र सिंह ने बीजेपी के साथ-साथ जजपा से गठबंधन को लेकर भी हमला बोला हो. इसी साल मार्च महीने में वीरेंद्र सिंह ने कहा था, "अगर बीजेपी गठबंधन करने की सोचेगी तो मेरा यह मानना है कि पार्टी खुद को अभी भी उतना सक्षम नहीं समझ रही है. मैं इस बात का पक्षधर हूं कि बीजेपी 10 साल के शासनकाल में हरियाणा में अपनी जड़ों को मजबूत करने में कामयाब हुई है. इसलिए बीजेपी को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए, उसके अच्छे नतीजे आएंगे. अगर गठबंधन की बात करेंगे तो लोगों में संशय की भावना आ जाएगी."


इसके बाद जून महीने में बीरेंद्र सिंह ने कई मुद्दों को लेकर हरियाणा की ही बीजेपी सरकार को जमकर घेरा. उन्होंने कहा था कि प्रदेश में क्राइम का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. बेरोजगार युवा अपनी जमीनों के बेचकर विदेश भाग रहे हैं. चाहे उन्हें गलत ढंग से विदेश जाने का मौका मिले, वह चूक नहीं रहे हैं. राज्य में सबसे बड़ी समस्या शिक्षा और स्वास्थ्य की है, जिसको लेकर बहुत ज्यादा काम किए जाने की आवश्यकता है. प्रदेश का युवा लगातार बेरोजगारी का शिकार हो रहा है.


नूंह हिंसा पर भी दिया था बड़ा बयान


वहीं अगस्त महीने में नूंह हिंसा पर बीजेपी नेता ने कहा था, "मैं समझता हूं कि ये जो भी घटना घटी है, उसमें कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसा कारण है, जिसकी वजह से ये हुई है. ये एकदम की बात नहीं, ये कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में पहले घटना घटने का कार्यक्रम रचा गया. इसके बाद ये ऐसा हुआ है. इसकी जांच होनी चाहिए. हमारे को बैठकर शांति पूर्ण वातावरण में इन चीजों को निखारना चाहिए, समाज के सामने लाना चाहिए."


बीरेंद्र सिंह ने आगे कहा था, "हरियाणा की जो अपनी सभ्यता, संस्कृति, विरासत है जो हमारे को प्रेम, सद्भावना के नाम से छत्तीस बिरादरी को साथ लेकर चलने को मिली है, इसको बनाकर रखना चाहिए." फिर बीते सितंबर महीने में बीरेंद्र सिंह का एक बयान किसान आंदोलन को लेकर आया था, जिसकी खूब चर्चा हुई थी. बीरेंद्र सिंह ने कहा था, "बीजेपी में मैं अकेला था जो किसान आंदोलन में किसानों के साथ खड़ा रहा. मैं अपनी सोच पर चलता हूं." यही नहीं बीरेंद्र सिंह पहलवानों के प्रदर्शन में भी शामिल हुए थे. 


कौन हैं चौधरी बीरेंद्र सिंह?


चौधरी बीरेंद्र सिंह हरियाणा के एक प्रमुख जाट नेता हैं. उनके पिता नेकी राम भी हरियाणा की राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे. वे हरियाणा के प्रख्यात किसान नेता सर छोटू राम के पोते हैं. बीरेंद्र सिंह ने पहली बार 1972 में चुनाव में कदम रखा. इसके बाद वह उचाना ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने. फिर पांच बार 1977, 1982, 1994, 1996 और 2005 में उचाना से विधानसभा का चुनाव भी जीता. वे तीन बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे. वहीं 1984 में हिसार में ओमप्रकाश चौटाला को हराकर पहली बार सांसद बने.


बीरेंद्र सिंह साल 2010 में कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा सदस्य के रूप में भी मनोनीत हुए. वहीं 2014 में बीजेपी का दामन थाम लिया था. कांग्रेस से 42 साल तक जुड़े रहने के बाद बीरेंद्र सिंह 16 अगस्त 2014 में जींद की एक रैली में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में पार्टी शामिल हुए थे. बीजेपी ने 2016 में उन्हें दोबारा राज्यसभा में भेज दिया था. साथ ही ग्रामीण विकास, पंचायती राज, स्वच्छता और पेयजल विभाग का मंत्री बनाया. इसके बाद वो इस्पात मंत्री भी बने. 2019 में बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह ने हिसार से जीत हासिल की. इसके बाद बीरेंद्र सिंह ने राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया.


जजपा का विरोध करने की वजह


दरअसल, साल 2019 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी के बहुमत से दूर रहने के बाद अजय सिंह चौटाला के नेतृत्व वाली जजपा ने समर्थन दिया था. जानकारी के अनुसार, राजनीतिक विवाद की वजह उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र भी है. उचाना बीरेंद्र सिंह का गढ़ है. इस सीट को लेकर लंबे समय से चौटाला और बीरेंद्र सिंह के परिवारों के बीच जुबानी जंग देखने को मिली. दोनों ने इस सीट पर अपने-अपने परिवारों के जीतने का दावा किया था. यहां 2009 के विधानसभा चुनाव में आईएनएलडी के ओमप्रकाश चौटाला ने बीरेंद्र सिंह को हरा दिया था. वहीं 2014 में प्रेम लता ने आईएनएलडी के दुष्यंत चौटाला को हराया. इसक बाद 2019 में दुष्यंत चौटाला ने 2014 में हार का बदला लिया और प्रेम लता को हरा दिया.


बीरेंद्र सिंह पर पहले भी हमल बोल चुकी है जजपा


हाल ही में जजपा नेता दिग्विजय चौटाला ने बीरेंद्र सिंह पर जुबानी हमला बोला था. उन्होंने कहा था कि बीरेंद्र सिंह ने उचाना में पांच साल में नौ करोड़ भी खर्च नहीं किए वे एक नॉन सीरियस नेता हैं, जबकि उनके मुकाबले में उचाना में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला चार साल में 960 करोड़ रुपये हल्के के विकास के लिए खर्च कर चुके हैं.


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