महाराष्ट्र की राजनीति में आरोपों और शब्दों की तलवारें और तेज हो गई हैं. कांग्रेस से अलग हो चुके नेता संजय निरुपम ने शिवसेना (UBT) के प्रवक्ता संजय राउत पर तीखा हमला बोला है. निरुपम ने कहा कि राउत जैसे लोगों के कारण ही पार्टी का अस्तित्व खत्म हुआ है. उनके इस बयान ने महाराष्ट्र की राजनीतिक गरमाहट को और बढ़ा दिया है.

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राहुल गांधी के ‘फेक वोट’ नैरेटिव पर निशाना

संजय निरुपम ने हालिया बयान में कहा कि राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से 'वोट चोरी' का झूठा नैरेटिव तैयार कर रहे हैं. उनके मुताबिक, कांग्रेस मतदाताओं के मन में फ़र्ज़ी सवाल खड़े कर रही है और अब महाराष्ट्र का विपक्ष भी उसी जाल में फंसता दिख रहा है. निरुपम ने कहा कि मतदाता सूची में नाम, जेंडर या पते की तकनीकी त्रुटियां हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सत्ताधारी दल को इससे कोई फायदा मिलता है. यह दावा पूरी तरह गलत है.

आदित्य ठाकरे पर तीखा वार

निरुपम ने ठाकरे परिवार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि आदित्य ठाकरे 'प्रेज़ेंटेशन' लेकर फेक वोटर्स की सूची एक्सपोज़ करने निकले हैं, जबकि यह सिर्फ तकनीकी गलती का मामला है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पहले 72 लाख, फिर 52 लाख और अब 30 लाख फेक वोट का दावा कर चुकी है- यानी उनके आंकड़े खुद ही गिरते गए. सच यह है कि विपक्ष अपनी हार स्वीकार नहीं कर पा रहा है. निरुपम के अनुसार, अगर मतदाता सूची में त्रुटियां हैं, तो उन्हें सुधारा जा सकता है, लेकिन पूरी प्रक्रिया को फर्जी कहना जनता को गुमराह करना है.

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चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर भरोसा

निरुपम ने कहा कि देश के 12 राज्यों में 'SIR प्रक्रिया' लागू की जा रही है ताकि मतदाता सूची और पारदर्शी हो सके. उन्होंने बताया कि अप्रैल से अक्टूबर 2024 के बीच महाराष्ट्र में करीब 1.98 लाख नए वोटर जुड़े हैं- यानी हर विधानसभा में औसतन 4 से 5 हजार. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सत्ता पक्ष ने षड्यंत्र किया था तो आदित्य ठाकरे खुद कैसे जीत गए और शिवसेना (UBT) के 10 विधायक कैसे सफल हुए? निरुपम ने चुनौती दी कि अगर विपक्ष को सच में आपत्ति है तो उनके विधायक इस्तीफा दें और नई मतदाता सूची बनने तक चुनाव न लड़ें.

राउत पर अपशब्दों का इस्तेमाल

राजनीतिक तर्कों के बाद संजय निरुपम ने सीधे संजय राउत पर निशाना साधते हुए कहा, “ऐसे इंसान की वजह से पार्टी का अस्तित्व खत्म हुआ. वह महाराष्ट्र के सबसे नापसंद किए जाने वाले नेता हैं.” उनके इस बयान ने राजनीतिक मर्यादाओं पर बहस छेड़ दी है. महाराष्ट्र की सियासत अब केवल विचारों की नहीं, बल्कि अपशब्दों की जंग में भी तब्दील होती जा रही है.