महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में बारिश से मौतों आंकड़ा बढ़ जाता है. यह खुलासा एक पर्यावरण पत्रिका की रिपोर्ट में हुआ है. इसे प्रिंसटन यूनिवर्सिटी अमेरिका के टॉम बेय्रापार्क, यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के अश्विन रोड, और ग्रीन ग्लोब कंसल्टिंग मुंबई में अर्चना पाटनकर ने अध्ययन के बाद लिखा गया है.
इस रिपोर्ट की मानें तो बारिश से हर साल होने वाली मौतें कैंसर से होने वाली मौतों के बराबर हैं. इसके साथ ही इस रिपोर्ट ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है, जहां आम नागरिकों की जान महज एक आंकड़ा साबित हो रही है.
हर साल करीब 2500 मौतें हुईं
इन्डियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, मुंबई में 2006 से 2015 के बीच मानसून के मौसम में हुई कुल मौतों में से लगभग 8 फीसदी मौतों (औसतन हर साल करीब 2,500) का कारण अत्यधिक बारिश रही. यह आंकड़ा कैंसर से होने वाली मौतों के बराबर बताया गया है. इसका खुलासा नेचर पत्रिका में बुधवार को प्रकाशित एक आर्थिक विश्लेषण किया गया.
जबकि अक्सर यह माना जाता है कि अत्यधिक वर्षा से होने वाली बाढ़ और जलभराव सड़क हादसों, जलजनित बीमारियों, बिजली के झटकों और बुनियादी ढांचे को होने वाले नुकसान से जुड़ी मौतों का कारण बनती हैं, लेकिन अब इस रिपोर्ट ने पहली बार इन मौतों की संख्या को वैज्ञानिक रूप से आंका है.
मौतों के रिकॉर्ड और बारिश के आंकड़ों का विश्लेषण
रिसर्च में इन एक्सपर्ट ने मुंबई नगर निगम के मृत्यु रिकॉर्ड्स का विश्लेषण किया और उन्हें बारिश के आंकड़ों से जोड़ा. इसमें पाया कि जब भी मुंबई में मानसून के दौरान बहुत भारी बारिश (15 सेंटीमीटर या उससे अधिक) होती है, तो शहर की मृत्यु दर में 2% की बढ़ोतरी होती है.
जून से सितंबर के बीच के मानसूनी महीनों में अक्सर भारी वर्षा होती है, और वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने इन परिस्थितियों को और गंभीर बना दिया है.
मौतों का बोझ उम्र-आर्थिक स्थिति के हिसाब से
रिसर्च में यह पाया गया कि अत्यधिक बारिश से होने वाली अतिरिक्त मौतों का बोझ समाज के अलग-अलग आयु, लिंग और आर्थिक समूहों पर असमान रूप से पड़ता है.
- 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मानसून से जुड़ी कुल मौतों में से 18% मौतें केवल भारी वर्षा से जुड़ी थीं. यह अनुपात सभी आयु वर्गों में सबसे अधिक था.
- लगभग 85% मौतें झुग्गी बस्तियों में रहने वालों में दर्ज की गईं.
- झुग्गियों में अत्यधिक वर्षा से जुड़ी 11% मौतें हुईं, जबकि गैर-झुग्गी क्षेत्रों में यह दर 4% रही.
जब किसी दिन 150 मिमी या उससे अधिक वर्षा हुई, तो अगले 5 हफ्तों में
- 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर 3% बढ़ी,
- 5 से 64 वर्ष के लोगों में 6%,
- और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में 3% की बढ़ोतरी हुई.
बुजुर्गों में मौतों का अनुपात अधिक
इसके साथ ही रिसर्च में यह भी पता चला कि ये परिणाम इस तथ्य के अनुरूप हैं कि बाढ़ से जुड़ी बीमारियां (जैसे डायरिया) बच्चों को अधिक प्रभावित करती हैं. हालांकि, बुजुर्गों में पहले से ही मृत्यु दर अधिक होने के कारण, बारिश से होने वाली थोड़ी-सी वृद्धि भी बड़ी संख्या में अतिरिक्त मौतों का कारण बन जाती है.