हाल ही में 5 दिन तक मराठा आरक्षण की मांग करने वाले आंदोलनकारी मनोज जरांगे ने बड़ा बयान दे दिया है. जरांगे ने एक बार फिर सरकार को साफ चेतावनी दी है कि अगर आरक्षण के मुद्दे पर मराठा समुदाय से विश्वासघात हुआ, तो सत्तारूढ़ दलों को चुनावों में कड़ी हार का सामना करना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि हर हाल में मराठा समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में शामिल कराया जाएगा. यह बयान उन्होंने भूख हड़ताल के बाद अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान पत्रकारों से बातचीत में दिया.

आंदोलन और सरकार का फैसला

जरांगे ने पांच दिन की भूख हड़ताल के बाद आंदोलन वापस लिया था, जब महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समाज को उनकी "कुनबी" पहचान का ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करने पर कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समिति बनाने की घोषणा की. चूंकि कुनबी को ओबीसी वर्ग में रखा गया है, इस फैसले को मराठा समुदाय के लिए राहत के रूप में देखा गया. 

मनोज जरांगे ने स्पष्ट किया कि अगर हैदराबाद और सातारा के राजपत्र एक महीने में लागू नहीं किए गए, तो वे सत्ताधारी दलों को आगामी चुनावों में धूल चटा देंगे. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी लड़ाई पूरे मराठा समाज के लिए है और कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रहेगा.

कोंकण मराठों को आरक्षण की मांग

जरांगे ने आगे कहा कि कोंकण क्षेत्र के मराठों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, और यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक वे भी इसका फायदा नहीं उठा लेते. उन्होंने चेताया कि अगर आज इस अवसर को खो दिया गया, तो 40-50 साल बाद लोग पछताएंगे और आने वाली पीढ़ियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.

उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे किसी के बहकावे में न आएं और शिक्षा व नौकरियों में अपने अधिकार के लिए एकजुट रहें. यह बयान आंदोलन को क्षेत्रीय से राज्यव्यापी स्वरूप देने की ओर संकेत करता है.

ओबीसी नेताओं की नाराजगी और विवाद

जरांगे ने OBC वर्ग के कुछ नेताओं की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर ओबीसी को लाभ होता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि खुशी होगी. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कुछ ओबीसी नेता हमेशा शिकायत करते हैं, लेकिन सरकार को सबके लिए समान कदम उठाने चाहिए, चाहे वे दलित हों, मुसलमान, आदिवासी या किसान. 

दूसरी ओर, ओबीसी नेता और मंत्री छगन भुजबल ने सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई और कैबिनेट बैठक से दूरी बनाई. उन्होंने संकेत दिया कि वे इसे कानूनी चुनौती दे सकते हैं, जिससे साफ है कि मराठा आरक्षण का मुद्दा फिलहाल सुलझने से दूर है.