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महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने सत्तापक्ष पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सत्ताधारियों (महायुति) को शर्म आनी चाहिए कि वे इतने कम अवधि वाले विधानसभा अधिवेशन को बिना विपक्ष के नेता के ही आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अधिवेशन (सत्र) छोटा है और विपक्ष नेता का न होना लोकतंत्र का उपहास है.

हर्षवर्धन सपकाल ने स्पष्ट कहा कि 10 प्रतिशत का मानक केवल एक धारणा है, उसका कहीं भी संवैधानिक उल्लेख नहीं है. विधान परिषद (ऊपरी सदन) में कांग्रेस के 10 प्रतिशत सदस्य हैं और उसी आधार पर हमने अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया है.

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'लोकशाही की पवित्रता बनाए रखें'

हर्षवर्धन सपकाल ने आगे कहा, "लोकतंत्र को रौंदे बिना संविधान की प्रगतिशील भावना का पालन होना चाहिए. विपक्ष जरूरी है. महाराष्ट्र के जिस 'महाराष्ट्र धर्म' की तुकाराम महाराज ने व्याख्या की है, सरकार को उसका पालन करना चाहिए."

उन्होंने कहा कि अधिवेशन के दौरान आधा समय सत्ताधारी पक्ष और आधा समय विपक्ष को चर्चा के लिए मिलना चाहिए. दोनों सदनों में विपक्ष के नेता से जुड़े मुद्दों को तुरंत सुलझाया जाना चाहिए. सपकाल ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार यह पद नहीं देती, तो इसका अर्थ है कि उन्हें लोकतंत्र पर विश्वास ही नहीं है.

'संवैधानिक विपक्ष नेता पद नहीं दिया जा रहा'

महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख ने ये भी कहा, "उपमुख्यमंत्री का पद तो निश्चित ही असंवैधानिक है, लेकिन जो पद पूरी तरह संवैधानिक है विपक्ष नेता उसे ही नहीं दिया जा रहा. यह संविधान और महाराष्ट्र की परंपराओं दोनों के खिलाफ है." उन्होंने कहा कि निचले सदन में शिवसेना (उद्धव गट) के सबसे अधिक सदस्य हैं. उन्होंने पिछली विधानसभा में भी इसका प्रस्ताव दिया था. यदि प्रस्ताव नहीं है, तो नया प्रस्ताव तुरंत प्रस्तुत किया जा सकता है; मामले को लटकाने की कोई जरूरत नहीं.

'सिर्फ घोषणाए नहीं, किसानों को सीधे राहत मिले'

हर्षवर्धन सपकाल ने आगे कहा कि स्वामीनाथन आयोग की शिफारिशें विदर्भ के किसानों की पीड़ा कम करने वाली थीं. इसलिए सरकार को केवल घोषणाओं की बारिश नहीं करनी चाहिए बल्कि किसानों को सीधी राहत देने का निर्णय करना चाहिए. यही अपेक्षा इस अधिवेशन से है.

अधिवेशन शुरू विपक्ष की मागें तेज

बता दें कि सोमवार से विधिमंडल का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ है. विपक्ष ने कई मागें उठाई हैं. इन मागों पर अधिवेशन में विचार होगा या नहीं इस पर प्रश्न उठ रहे हैं. सपकाल ने ये भी दोहराया कि सत्ताधारियों और विपक्ष दोनों को आधा-आधा समय मिलना चाहिए, और घोषणाओं की जगह किसानों के लिए ठोस राहत जरूरी है.