महाराष्ट्र में बॉम्बे उच्च न्यायालय के नए परिसर की नींव 5 नवंबर को रखी गई. इस दौरान वहां भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) भूषण गवई ने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह भवन “न्याय का मंदिर होना चाहिए, न कि सात सितारा होटल.” उपनगर बांद्रा (पूर्व) में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने न्यायपालिका की भूमिका को लोकतांत्रिक और जनता केंद्रित बताया. 

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सीजेआई भूषण गवई ने कहा कि अदालतों के निर्माण में विलासिता नहीं, बल्कि जनता की सुविधा और संविधानिक मूल्यों का ध्यान रखा जाना चाहिए. यह कार्यक्रम उनके कार्यकाल के अंत से पहले महाराष्ट्र में उनकी आखिरी आधिकारिक यात्रा भी रहा.

कोर्ट बने न्याय का मंदिर, न कि साम्राज्य का प्रतीक- CJI

CJI गवई ने अपने संबोधन में कहा कि न्यायालय भवन केवल न्यायाधीशों की सुविधा के लिए नहीं, बल्कि नागरिकों यानी वादियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि नया भवन किसी साम्राज्यवादी ढांचे की तरह नहीं दिखना चाहिए, बल्कि उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब झलकना चाहिए. उन्होंने 14 मई 2025 को पदभार संभाला था और 24 नवंबर को कार्यकाल समाप्त होने से पहले इस शिलान्यास को अपने लिए “गौरव का क्षण” बताया. पीटीआई के अनुसार, उन्होंने कहा, “मैं खुश हूं कि अपने गृह राज्य में न्यायिक ढांचे के इतने बड़े प्रोजेक्ट की नींव रखकर अपने कार्यकाल का समापन कर रहा हूं.”

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मुंबई में बनेगा शानदार लेकिन लोकतांत्रिक ढांचा- CJI

CJI ने कहा कि जब यह इमारत पूरी होगी, तो वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर यह सबसे भव्य ढांचा होगा. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भव्यता का अर्थ विलासिता नहीं होना चाहिए, बल्कि सुविधा और गरिमा का संतुलन होना चाहिए. उन्होंने आलोचकों की इस राय से असहमति जताई कि महाराष्ट्र न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे में पीछे है. उन्होंने बताया कि अपने छोटे कार्यकाल में उन्होंने राज्य के कई जिलों में न्यायालय भवनों का उद्घाटन और शिलान्यास किया है.