मुंबई में 15 जनवरी को होने वाले नागरिक निकाय यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव से पहले सियासी माहौल लगातार गर्म होता जा रहा है. इसी बीच सामने आए आंकड़ों ने शहर की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है. आरोप है कि पिछले 3 साल में बीएमसी के विकास कार्यों का पैसा लगभग पूरी तरह सत्तारूढ़ दलों के इलाकों में ही खर्च किया गया, जिससे चुनाव से पहले बराबरी और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं.

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आरटीआई से सामने आया बड़ा खुलासा

सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मिले रिकॉर्ड के आधार पर पता चला है कि फरवरी 2023 से अक्टूबर 2025 के बीच बीएमसी ने करीब 1,490.66 करोड़ रुपये के विकास कार्यों को मंजूरी दी.

इसमें सड़कों की मरम्मत, नालियों की सफाई, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और इलाकों के सौंदर्यीकरण जैसे काम शामिल थे. चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 99 प्रतिशत से ज्यादा रकम उन वार्डों में खर्च हुई, जहां सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के विधायक या सांसद हैं.

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भाजपा को सबसे बड़ा हिस्सा

आंकड़ों के मुताबिक, इस पूरी राशि में सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला. भाजपा के जनप्रतिनिधियों के क्षेत्रों में करीब 1,076.7 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इसके बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के इलाकों में 372.7 करोड़ रुपये का विकास हुआ.

अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के हिस्से भी सत्तारूढ़ गठबंधन के तौर पर ये खर्च गए. यानी कुल मिलाकर लगभग 1,476.92 करोड़ रुपये महायुति के ही इलाकों में लगाए गए.

विपक्ष लगभग खाली हाथ

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके उलट विपक्षी दलों की स्थिति बेहद कमजोर रही. तीन साल की अवधि में विपक्ष को सिर्फ 13.74 करोड़ रुपये मिले, जो कुल राशि का महज 0.9 प्रतिशत है.

यह पूरी रकम भी कांग्रेस के एकमात्र विधायक अमीन पटेल को दी गई, जो दक्षिण मुंबई की मुंबादेवी विधानसभा सीट से आते हैं. शिवसेना (यूबीटी) के सभी 10 विधायक, कांग्रेस के दो अन्य विधायक और समाजवादी पार्टी के एक विधायक को इस दौरान एक भी रुपया नहीं मिला.

यह पहली बार नहीं है जब ऐसा असंतुलन सामने आया हो. जनवरी 2024 में भी इसी तरह के आरटीआई आंकड़ों से खुलासा हुआ था कि अस्थायी नीति के शुरुआती चरण में बांटे गए पूरे 500 करोड़ रुपये सिर्फ सत्तारूढ़ दल के विधायकों को ही दिए गए थे. यानी यह पैटर्न लगातार दोहराया जा रहा है.

शहरी नीति के जानकार मानते हैं कि चुनाव से पहले विकास कार्यों का असर सीधा मतदाताओं पर पड़ता है. बेहतर सड़कें, साफ-सुथरे सार्वजनिक स्थान और नई सुविधाएं सत्तारूढ़ दल के नेताओं की मौजूदगी और पकड़ को मजबूत करती हैं. यही वजह है कि इसे चुनाव-पूर्व राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है.

सबसे अमीर नगर निगम है बीएमसी

बीएमसी देश की सबसे अमीर नगर निगम मानी जाती है, जिसका सालाना बजट 74 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. ऐसे में विकास फंड के इस तरह के असमान बंटवारे ने निष्पक्ष शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर तब जब चुनाव अब कुछ ही दिन दूर हैं. अब देखना होगा कि इस मुद्दे का असर चुनावी नतीजों पर कितना पड़ता है.