महाराष्ट्र के कोल्हापूर के कागल में सत्ता का पूरा खेल केवल 24 घंटों में उलट-पलट हो गया है. एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हसन मुश्रीफ और समरजीत घाटगे निकाय चुनाव में एक साथ आ गए हैं. चंदगड़ में दोनों राष्ट्रवादी गुटों के एक साथ आने के बाद अब कागल में भी वैद्यकीय शिक्षण मंत्री हसन मुश्रीफ और राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) के समरजीत घाटगे  जो कट्टर प्रतिद्वंदी माने जाते थे एक ही मंच पर आ गए हैं.

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विधानसभा चुनाव में आमने-सामने भिड़ने वाले ये दोनों गुट अब कागल नगरपरिषद के चुनाव में मिलकर प्रचार करेंगे. इसी कारण “झटका किसे और खुशी किसे?” यह प्रश्न स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है.

मुश्रीफ-घाटगे गठबंधन के साथ

संजय घाटगे और संजय मंडलिक के भी एक साथ आने की चर्चा जोर पकड़ रही है. दूसरी ओर मुरगुड में प्रवीण सिंह पाटील के भाजपा में शामिल होने के बाद उनकी पत्नी सुहासिनी पाटील शिवसेना (शिंदे गुट) की ओर से नगराध्यक्ष पद की दौड़ में हैं. मुरगुड में हुए इस समझौते का प्रभाव अब कागल के राजनीतिक समीकरणों पर भी दिखाई दे रहा है.

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क्या कागल में भी होंगे ‘बिना विरोध’ नगराध्यक्ष?

चंदगड में दोनों राष्ट्रवादी गुट एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ खड़े हुए हैं.मुरगुड में मंडलिक गुट को नगराध्यक्ष पद देकर समझौता किया गया है. इसी पृष्ठभूमि में अब कागल में भी“बिना विरोध नगराध्यक्ष” का फॉर्म्युला तैयार होता दिख रहा है. चर्चा के अनुसार कागल नगरपरिषद की 23 सीटों में से 12 सीटें मुश्रीफ गुट को और बाकी 11 सीटें अन्य गुटों में बांटने की संभावना है.

संभावित सीट बंटवारा

समरजीत घाटगे गुट- 8 सीटें

संजय घाटगे गुट- 2 सीटें

मंडलिक गुट- 1 सीट

नगराध्यक्ष पद को ढाई-ढाई साल

इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद पहले ढाई साल मुश्रीफ गुट को दिए जाने की संभावना ज्यादा है. लेकिन इस पूरे राजनीतिक समीकरण में शिंदे गुट (मंडलिक गुट) क्या भूमिका लेगा, यह निर्णायक होगा. अगर उन्होंने अपना रुख बदला, तो पूरा समीकरण एक पल में बदल सकता है और यदि वे समझौता करते हैं तो कागल में ‘बिना विरोध नगराध्यक्ष’ का इतिहास बन सकता है.