भिंड: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भिंड (Bhind) जिले में एक गांव है, दिन्नपुरा. यह एक ऐसा गांव है, जहां आज भी लोग पीने के पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. पेयजल व्यवस्था के लिए चंबल नदी (Chambl River) के किनारे बसे गांव के निवासी पीने के पानी (Drinking Water) के लिए नदी पर निर्भर हैं. वो मगरमच्छों (Crocodiles) के खतरे के बीच अपनी जान हथेली पर रख कर नदी से पानी भरते हैं. हालत यह है कि बीते सालों ने कई मवेशी और ग्रामीण हादसों का भी शिकार हो चुके हैं. इसके बाद भी इस गांव में पीने के पानी की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.


सहकारिता मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में है यह गांव


इन गांवों को सरकारी पेयजल योजनाओं का लाभ नहीं मिला है. ऐसा तब है जब प्रदेश के ग्रामीण अंचलों के विकास की जिम्मेदारी संभाल रहे सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया इस क्षेत्र से विधायक हैं. भिंड जिले के अटेर क्षेत्र के ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं. कहने को यह गांव चंबल नदी के किनारे बसा है. लेकिन यहां की ग्राम पंचायत मघेरा खारे पानी की समस्या से जूझ रहा है. इस पंचायत का गांव दिन्नपुरा चंबल नदी से केवल एक किलोमीटर की दूरी पर बसा है. लेकिन गांव में पीने लायक पानी नहीं है.


ग्रामीणों के मुताबिक गांव में ना तो हंडपंप है और ना ही सरकारी बोरवेल. इसलिए वो नदी से पानी भरने को मजबूर हैं. चंबल नदी जलीय जीवों से संपन्न है. श्योपुर से लेकर भिंड तक का 400 किलोमीटर का चंबल नदी का इलाका जलीय जीवों के लिए चंबल सेंचुरी के रूप में संरक्षित है. इसमें डॉल्फिन, दुर्लभ प्रजाति की मछलियां, घड़ियाल, मगरमच्छ जैसे खूंखार जलीय जीव पाए जाते हैं. इसलिए पीने के पानी के लिए ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है. ग्रामीणों के मुताबिक कई बार बच्चे और मवेशी इन मगरमच्छों का शिकार बन चुके हैं. लेकिन सरकारी मशीनरी ने आज तक यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम या पेयजल की व्यवस्था नहीं की है.


कई लोग एक साथ पानी भरने जाते हैं


दिन्नपुरा गांव के कई लोगों ने पूरी जिंदगी पानी की जद्दोजहद में गुजार दी. सुबह कामकाज निपटा कर गांव के लोग एक साथ चंबल किनारे पहुंचते हैं. सिर पर मटका, हाथों में बाल्टी, डिब्बे जो भी बर्तन पानी लाने में काम आ सके उसे ढोकर ले जाते हैं. कुछ लोग नदी पर नजर रखते हैं और कुछ लोग पानी भरते हैं. पानी लाने और ले जाने का काम ज्यादातर महिलाओं के जिम्मे है. 


इस गांव की एक महिला ने बताया कि गांव में लगे एक हंडपंप के ज़रिए पानी तो आता है, लेकिन उसे पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. पीने के पानी के लिए हमें रोज नदी पर जाना पड़ता है. लोग सुबह और शाम पानी लाने जाते हैं. इस दौरान मगरमच्छ का डर बना रहता है. उन्होंने बताया कि इसकी शिकायत कई बार जनप्रतिनिधियों से की गई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. 


नदी के गर्म रेत में जला है पैर


दिन्नपुरा की एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि नदी के किनारे की रेत गर्मी में और गर्म हो जाती है. उसमें जाने से पैर जलते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पास मगर और घड़ियालों के डर के बीच नदी से पानी लाना ही एक विकल्प है. जब कोई मगरमच्छ आता है तो पत्थर मार कर उसे दूर किया जाता है. थोड़ी सी भी चूक जानलेवा साबित हो जाती है. पिछले साल एक बच्चे पर मगरमच्छ ने हमला किया था. उसे समय रहते बचा लिया गया. वहीं एक लड़के की तो आज तक लाश भी नहीं मिली. 


इस मामले पर हमने मघेरा पंचायत के सरपंच से बात की. उनका कहना था कि सालों से यहां पेयजल समस्या बरकरार है. दिन्नपुरा में सभी हेंडपम्प में खारा पानी निकलता है. पंचायत के पास अब हैंडपंप स्वीकृत करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश शासन के मंत्री अरविंद भदौरिया हाल ही में यहां आए थे. उन्होंने टंकी बनवाने का आश्वासन दिया है. 


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