Chhindwara Shahjahan Success Story: छिंदवाड़ा की शाहजहां दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गयी हैं. उन्होंने लंबे संघर्ष के बाद ऊंचा मुकाम हासिल किया. 44 वर्षीय शाहजहां ने एडीपीओ की परीक्षा में 154वीं रैंक हासिल की. 500 में से 320 अंक हासिल कर शाहजहां ने परिजनों के साथ जिले का नाम रोशन किया है. शाहजहां बताती हैं कि सफलता मार्ग कठिन था. मायके से लेकर ससुराल तक आर्थिक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. कुम्हारी मोहल्ला निवासी इसराइल की तीन बेटियों में शाहजहां मंझली हैं. 


शाहजहां के पिता टेलर और पति मैकेनिक हैं. उन्होंने 2004 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. दो साल बाद परासिया निवासी अब्दुल सलीम से हुई शाहजहां की शादी हो गयी. शाहजहां का सरकारी नौकरी पाने का सपना था. शाहजहां को एडीपीओ की परीक्षा की जानकारी मिली. उन्होंने परिवार वालों से परीक्षा की तैयारी के लिए अनुमति मांगी. सपनों को पूरा करने में आर्थिक स्थिति बाधा बन गयी. शाहजहां ने एलएलबी की प्रैक्टिस के साथ पिता की टेलरिंग शॉप में काम करके पैसे जुटाये.





छिंदवाड़ा की शाहजहां दूसरों के लिए बनीं प्रेरणा


आखिरकार शाहजहां ने परीक्षा की निर्धारित उम्र के आखरी पड़ाव पर 2021 में एडीपीओ की परीक्षा दी. 2 मई को घोषित परीक्षा परिणाम में शाहजहां को सफलता मिल गयी. शाहजहां बताती हैं, '17 वर्षीय इकलौती बेटी अलशिफा भी होनहार है. उसने 12वीं की परीक्षा में 77 फीसदी अंक के साथ प्रथम स्थान हासिल किया है. बेटी का सपना इंजीनियर बनने का है.' शाहजहां को सफलता लंबे संघर्ष के बाद मिला. उन्होंने परिवार की मदद करने के लिए सिलाई सेंटर खोला और बुटिक का काम किया.


ADPO की परीक्षा में बताया कैसे मिली सफलता


परासिया कोर्ट में प्रैक्टिस जारी रखते हुए प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की. लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने पारिवारिक परेशानियों को नजरअंदाज कर तैयारी पर फोकस किया. एडीपीओ बनीं शाहजहां का कहना है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ फीस के लिए पैसे जुटाना बड़ी चुनौती थी. पढ़ाई में पिता के अलावा ससुराल वालों ने भी भरपूर सहयोग किया. शाहजहां ने नींद में कटौती कर परीक्षा की तैयारी की.


ससुराल में सुबह जल्दी उठकर घर का कामकाज करने के बाद सुबह 8 बजे कोचिंग जाना पड़ता था. कोचिंग से लौटने के बाद कोर्ट में प्रैक्टिस करतीं. कोर्ट का काम नहीं होने पर पिता की टेलरिंग शॉप में हाथ बटाना पड़ता था. शाम को घर लौटने के बाद रसोई में खाना बनाते समय भी पढ़ाई करतीं. देर रात 1 बजे तक पढ़ाई के बाद सुबह 5 बजे उठना दिनचर्या में शामिल हो गया था.


(रिपोर्ट- विपिन पांडेय) 


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