MP Siyasi Scan: उज्जैन के प्रथम नागरिक का पद देवताओं में भगवान श्री गणेश की तरह माना जाता है. लेकिन धार्मिक नगरी उज्जैन (Ujjain) में महापौर (Mayor) की सियासत केवल महापौर पद पर ही क्यों खत्म हो जाती है? यह प्रश्न पिछले कई दशकों से जन्म ले रहा है. महापौर को राजनीति में दूसरी बार कभी आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाया. हालांकि इस बार फिर कुछ अलग ही समीकरण दिख रहे हैं. 


धार्मिक नगरी उज्जैन में महापौर प्रत्याशी का फैसला कई बार बीजेपी और कांग्रेस (BJP-Congress) ने दिल्ली से लिया है इसलिए इस पद के मायने हर कोई पहचानता है. इस बार कांग्रेस की ओर से महापौर पद के लिए विधायक महेश परमार को उतारा गया था. कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार को बीजेपी प्रत्याशी मुकेश टटवाल ने शिकस्त दे दी.


किसी को नहीं मिला सांसद का टिकट


बीजेपी के गढ़ माने जानी वाली उज्जैन नगर निगम (Ujjain Municipal Corporation) पर पिछले लंबे समय से बीजेपी का कब्जा रहा है. हालांकि यह प्रश्न कई बार उठता है कि पूर्व विधायक चुनाव लड़कर महापौर बन चुके हैं. मगर कोई भी महापौर विधायक या सांसद का टिकट अभी तक क्यों नहीं ला पाया है? महापौर पद के साथ ही नेताओं की राजनीति हाशिए पर चली गई इसे लेकर राजनीति के दिग्गज भी हमेशा से चर्चा करते आए हैं. 


इन नेताओं ने संभाला महापौर का पद


उज्जैन में महापौर के पद पर अंजू भार्गव, मदनलाल ललावत, रामेश्वर अखंड, सोनी मेहर, मीना जोनवाल के बाद मुकेश टटवाल पदभार ग्रहण किया है. इन नेताओं में रामेश्वर अखंड पूर्व विधायक रह चुके हैं. उन्होंने विधायक बनने के बाद महापौर का चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से चुनाव जीत गए. मगर महापौर बनने के बाद कोई भी नेता विधायक या सांसद का टिकट तक नहीं ले पाया. 


2 विधानसभाओं का किया जाता है प्रतिनिधित्व


उज्जैन में जब महापौर का चुनाव होता है तो उत्तर विधानसभा के साथ-साथ दक्षिण विधानसभा के मतदाता भी महापौर का चुनाव करते हैं. महापौर बनने के लिए 2 विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का आशीर्वाद जरूरी है. इससे समझा जा सकता है कि महापौर का पद कितना महत्वपूर्ण माना जाता है. शहर के प्रथम नागरिक को कई ऐसे विशेष अधिकार होते हैं जो विधायक के पास भी नहीं रहते हैं. इसलिए महापौर पद हासिल करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही एड़ी चोटी का जोर लगाती है.


'पार्टी जिसे आदेश देगी वही उतरेगा मैदान में'


उज्जैन के महापौर मुकेश टटवाल के मुताबिक, बीजेपी जिसे सेवा का मौका देगी वह मैदान में उतरेगा. पार्टी हमेशा से सभी कार्यकर्ताओं को आगे लाने में लगी रहती है. पार्टी के पास कई अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं, इसी वजह से कई बार मौका नहीं मिल पाता है. इसका यह मतलब नहीं है कि महापौर बनने के बाद राजनीतिक जीवन खत्म हो जाता है. कई पूर्व महापौर अभी भी समाज सेवा कर रहे हैं.


दूसरे शहरों में महापौर बने विधायक और सांसद


उज्जैन से आसपास के शहरों की ही बात की जाए तो इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय महापौर के अलावा विधायक भी रह चुके हैं. इसी तरह कृष्ण मुरारी मोघे भी महापौर और सांसद रह चुके हैं, इतना ही नहीं भोपाल से कृष्णा गौर महापौर विधायक बन चुकी हैं. ऐसे एक दो नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में दर्जनों उदाहरण है जहां महापौर के बाद विधानसभा और लोकसभा पहुंचने का रास्ता साफ हो चुका है. 


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