Singrauli News: कोयला और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कई कीर्तिमान गढ़ने वाली ऊर्जाधानी सिंगरौली की धरती दिनों-दिन प्रदूषित हो रही है. कोयले का डस्ट और भारी वाहनों की आवाज ने लोगों के जीवन में जहर घोल दिया है. हालात ऐसे हो गए हैं कि खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है. सिंगरौली में बिजली और कोयले का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. एनसीएल, रिलायंस, अडानी का कोयला खदान भी है. एनसीएल की 12 खदानें सिंगरौली में है. खदानों में 1985 के दशक से शुरू हुआ खनन अब भी बदस्तूर जारी है. इसकी कीमत सिंगरौली वासी स्वास्थ्य से चुका रहे हैं. पर्यावरणविदों की मानें तो अब कोयला उत्खनन के और भी घातक परिणाम सामने आएंगे.


धुंधली हो रही है ऊर्जाधानी की तस्वीर


विश्व भर में कोयला आधारित पावर प्लांट को बंद कर दूसरे विकल्पों की तलाश की जा रही है, लेकिन हमारे देश में अब भी कोयला आधारित पावर प्लांट को ही बढ़ावा दिया जा रहा है. धरती के भीतर से कोयला निकालने के दौरान कई पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पड़ते हैं. नियमों को धत्ता बताते हुए लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है. पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदेह है. कोयला आधारित पावर प्लांट से भी पर्यावरण को बेहद नुकसान हो रहा है. कोयला खदानों से उत्खनन कर कोयले का परिवहन रेल और रोड दोनों ही माध्यमों से होता है. खासतौर पर ट्रकों के माध्यम से कोयला ढुलाई से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है.


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कोयला खदानों में नियम विरुद्ध  काम


पर्यावरण अधिकारी, पावर प्लांट या एनसीएल अधिकारी सभी चुप्पी साधे हैं. पर्यावरण नियमों के उल्लंघन और कोयला खदानों में नियम विरुद्ध  कार्यों पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं होते. कोयले की धूल और कैंसर कारक पदार्थों को झेलना अब जिले वासियों की नीयति बन चुकी है. डर है कि जब सब कुछ लुट चुका होगा, तब होश में आने पर भी शेष कुछ नहीं रहेगा. मामले में जिला कलेक्टर राजीव रंजन मीणा ने कहा कि प्रदूषण को रोकने के लिए कोल कंपनी के प्रबंधक को निर्देश दिये गए हैं. नियमों की अनदेखी करने पर कई बार जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से कार्यवाही और जुमार्ना भी लगाया गया है. 


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