Raisen Drought News: मध्य प्रदेश में सितंबर महीने में अप्रैल-मई जैसी तेज धूप हो रही है, इससे प्रदेश में सूखा पड़ने के आसार जताये जा रहे हैं. बीते एक महीने से बारिश न होने के कारण, रायसेन जिले के कई किसान अपने धान के खेत में ट्रैक्टर से जुताई कराने को मजबूर हो रहे हैं. बारिश नहीं होने से धान की फसल सूखने लगी है, यही वजह है कि परेशान किसान धान की खड़ी फसल को नष्ट कर अगली फसल की तैयारी करने लगे हैं. एक ओर प्राकृतिक आपदा से जहां किसानों को भारी नुकसान हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर बेसुध प्रशासन और सरकार चुनावी तैयारी में व्यस्त है.


रायसेन में तो जिला प्रशासन और भारत निर्वाचन आयोग के वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त धर्मेन्द्र शर्मा, विश्व प्रसिद्ध सांची के बौद्ध स्तूपों का पर्यटन कराने में व्यस्त हैं. इधर किसान मौसम की बेरुखी ओर बिजली के अभाव में खेतों में खड़ी धान की फसल पर ट्रैक्टर चलाने को मजबूर हैं. रायसेन जिले का शुमार मध्य प्रदेश के सबसे बड़े धान उत्पादक जिले के रुप में होता है. यहां इस साल करीब 2 लाख 85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल लगाई गई हैं. धान का उत्पादन कम होने के आसार के चलते इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला है. बताया जा रहा है कि जब पैदवार कम होगी तो मंहगाई बढ़ेगी और आम आदमी की थाली में आने वाला बासमती चावल सहित दूसरे चावल महंगे होंगे.


किसान ने क्या है?


रायसेन जिले के ग्राम मोहनियाखेड़ी के किसान अपने धान के खेतों में पड़ी दरारों को देखकर निराश हैं. वह कई किसानों को अभी भी बारिश की आस है, जिससे थोड़ी बहुत धान की पैदावर हो जाये. इसी गांव के एक किसान चंद्रेश शर्मा जिन्होंने 25 एकड़ खेत में 7 लाख की लागत से धान की फसल लगाई थी. उन्होंने कहा, बीते एक महीने से बारिश नहीं होने के कारण खेतों में मोटी-मोटी दरारें पड़ गई हैं. नीचे से धान की फसल पीली पड़ने लगी है. यही वजह है कि कुछ खेतों में फसल पर ट्रैक्टर चलाने की नौबत आ गई है. 


4 से 6 घंटे ही मिल रही है बिजली


फसलों के खराब होने के लिए कई किसान प्रदेश सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं. पीड़ित किसानों के मुताबिक, सरकार किसानों को 10 घंटे बिजली देने का दावा कर रही है. हालांकि किसानों को सिर्फ चार से छह घंटे ही बिजली मिल पा रही है. ये बिजली खेतों में सूखती फसल के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. ऐसे स्थिति में किसानों के पास फसल पर ट्रैक्टर चलाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है. ये स्थिति जिले के सांची, गैरतगंज, बेगमगंज तहसील के गांवों में अधिक देखने को मिल रही है, क्योंकि इन इलाकों में कोई भी सिंचाई की बड़ी परियोजना मौजूद ही नहीं है.


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