MP News: मध्यप्रदेश में वैसे तो लोकनृत्य राई देह व्यापार से जुड़ी जाति बेड़िया समुदाय से जुड़ा है. लेकिन बुन्देलखण्ड और एमपी कई इलाकों में राई नृत्य बेहद लोकप्रिय है. खुशी के मौकों से लेकर मंच तक इसकी धूम रहती है. इसी राई नृत्य के लोक नर्तक राम सहाय पांडे ने नृत्य को मंचीय मुकाम तक सम्मान दिलाने में अहम भूमिका निभाई. कल उनको पद्मश्री सम्मान की घोषणा की गई.

  सागर के कनेरा देव निवासी 94 वर्षीय रामसहाय पांडेय के घर में मंगलवार की शाम जश्न का माहौल था. शाम को जब राई नर्तक पांडेय को पदम श्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की जानकारी मिलते ही पूरे शहर में खुशी छा गई. पांडेय के परिचित व कई लोग उन्हें बधाई संदेश देने पहुंचे वहीं पांडेय भी यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से गदगद थे.


पूरा जीवन लोक कला को किया समर्पित
अपने परिवार की परवाह न करते हुए ब्राह्मण होने के बावजूद भी अपना पूरा जीवन लोक कला के प्रति समपर्ण कर दिया और जिस नृत्य को समाज ठुकराती थी. उसी नृत्य को अपनाकर बेडिय़ा जाति की नृतकियों के साथ नृत्य करने लगे. बेडिया समाज को समाज में स्थान दिलाकर लोक नृत्य राई को ग्रामीण क्षेत्र से उठा कर राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुतियां दीं.




पांडेय ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि उनकी लगन व मेहनत को देखते हुए कभी न कभी इसके लिए उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा. 94 वर्षीय  पांडेय 17-18 साल की उम्र से राई नृत्य करते आ रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सामाजिक बहिष्कार झेला, लेकिन उन्होंने हार नहींं मानी.वे लगातार राई नृत्य के अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम करते रहे.


आज बुंदेलखंड का यह नृत्य अपनी अलग पहचान बना चुका है, उसमें श्रीराम सहाय पांडे का बहुत बड़ा श्रेय जाता है। पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को मडधार पठा में हुआ था. इनके पिता का नाम लालजू पांडे व माता का नाम करैयाबाली था. इनके पिता खेती व गांव के ही मालगुजार के यहां काम करते थे. पांडे अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे. इनकी बड़ी बहन कनेदादेव में ब्याही थी. जहां आकर वे बाद में रहने लगे.


श्रीराम सहाय पांडे ने बचपन में ही मृदंग बजाना सीखा.इसके बाद वर्ष 17-18 साल की उम्र से धीरे-धीरे राई नृत्य के प्रति लगाव हुआ. वहीं से वह राई नृत्य करने के लिए जाने लगे. इससे वे पूरे क्षेत्र में ख्यात हो गए.


राई नृत्य के कारण शादी में भी हुई दिक्कत
पांडे जब शादी योग्य यानी 20-21 साल के हुए तो राई नृत्य करने की वजह से ब्राह्मण समाज में उन्हें कोई लड़की देने तैयार नहीं था.उन्होंने एक तरह से सामाजिक प्रतिबंध झेला. बड़ी मुश्किश्ल से घाना गांव निवासी पं. केशवदास अपनी लड़की इस शर्म पर शादी करने तैयार हुए कि अब वह राई नहीं करेगा, लेकिन शादी के बाद भी रामसहाय ने राई नृत्य बंद नहीं किया तो उन्हें उनके बड़े भाई ने परेशान होकर घर से निकाल दिया. इसके बाद  पांडे कनेरा देव आए. जहां स्थानीय घोषी समाज की मदद से उन्हें जगह मिली. यहां उन्होंने अपनी जिंदगी शुरू की. पांडे के पांच पुत्र व चार पुत्र हुए, राई नृत्य के चलते इनकी शादी में भी परेशानी हुई.


1964 पर राई को मिला मंच
श्रीराम सहाय पांडे ने इन सभी परेशानियों के बीच अपना राई नृत्य जारी रखा. इस दौरान 1964 में आकाशवाणी भोपाल द्वारा भोपाल के रवींद भवन में रंगवार असव में कहें राई नृत्य के लिए बुलाया गया. यहां पांडे ने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद्र नारायण की उपस्थिति में राई की प्रस्तुति दी.यहां सराहना व प्रोत्साहन मिलने के बाद वे लगातार आकाशवाणी एवं पंचायत तथा समाज सेवा विभाग के कार्यक्रमों में जाने लगे.




1980 में मप्र शासन द्वारा स्थापित आदिवासी लोककला परिषद सदस्य चुने गए. 1980 में ही मध्यप्रदेश शासन के पंचायत सेवा विभाग द्वारा रायगढ़ में मप्र शासन द्वारा नित्य शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया. इसके बाद सन 1984 में म.प्र शासन द्वारा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया. इसके बाद सन 1984 में ही जापान कान के आमंत्रण पर एक माह के लिए जापान भेजा गया. इसके बाद निरन्तर पांडेय ने देश-विदेशों में प्रस्तुति दी.


पांडे कई साल से युवक-युवतियाें को राई नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे हैं.यहां के राई नर्तकों ने देश-विदेश में इसकी अलग पहचान बनाई. पांडे के नेतृत्व में वर्ष 2006 में मप्र शासन द्वारा दुबई में राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई. इसके अलावा कई देशों में इस लोक कला का प्रदर्शन हुआ और व नृत्य को सराहना मिली. वर्ष 2000 में बुंदेली लोक नृत्य व नाट्य कला परिषद् के नाम से एक संस्था की स्थापना की गई, जहां छात्र- छात्राओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा.पांडे  के पुत्र संतोष पांडे का कहना है कि संस्था में आज कई बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं.पिताजी को पद्मश्री पुरस्कार मिलने की जानकारी से पूरे शहर में उत्साह है


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