मध्य प्रदेश के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का एक बयान सोशल मीडिया पर तीखी बहस का कारण बन गया है. सागर जिले के एक कार्यक्रम में दिया गया उनका वीडियो अब तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में मंत्री ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि गांव में अभी मतदाता सूची का काम चल रहा है. सभी अपना नाम जुड़वा लें. इस बार अलग प्रकार से नाम जुड़ रहे हैं. अगर मतदाता सूची में नाम नहीं जुड़वाया तो आपका राशन-पानी, आधार कार्ड और कई सुविधाएं बंद हो जाएंगी.

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उनकी इस टिप्पणी के सोशल मीडिया पर आते ही लोग हैरान रह गए. कई यूजर्स ने सवाल उठाए कि क्या वास्तव में मतदाता सूची और सरकारी योजनाओं के लाभ का कोई सीधा संबंध है. वीडियो के अनुसार मंत्री आगे कह रहे हैं कि अभी समय है. एक दिन निकालकर जाकर अपना नाम जुड़वा लें. जब मेरा नाम जेरई गांव में मतदाता सूची में जुड़ रहा था, मैं खुद जाकर फार्म जमा कर आया था.

मंत्री के वीडियो ने मचाई राजनीतिक हलचल

बताया जा रहा है कि यह वीडियो 28 नवंबर का है, लेकिन आज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई. विपक्ष ने मंत्री के बयान को गुमराह करने वाला और दबाव डालने वाला बताया है. उनका कहना है कि यह लोगों में डर पैदा करने वाली भाषा है, जबकि सरकार को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि मतदाता सूची का सरकारी सुविधाओं से कोई संबंध नहीं होता.

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ग्रामीणों पर जानबूझकर दबाव बना रहे गोविंद- कांग्रेस

कांग्रेस ने बयान की आलोचना करते हुए कहा कि मंत्री राजपूत जानबूझकर ग्रामीणों पर दबाव बना रहे हैं. विपक्ष का तर्क है कि राशन कार्ड, आधार कार्ड, जल-विद्युत कनेक्शन और सरकारी योजनाओं से लाभ लेने के लिए मतदाता सूची में नाम होना अनिवार्य नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसे बयान लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर गलत असर डालते हैं.

सोशल मीडिया पर मंत्री से लोग मांग रहे सफाई

सोशल मीडिया पर लोग भी इस मुद्दे पर मंत्री से सफाई मांग रहे हैं. कई लोगों ने टिप्पणी की कि सरकारी योजनाएं नागरिकों का अधिकार हैं और वोटर लिस्ट उससे अलग एक प्रक्रिया है. वहीं कुछ लोगों ने मंत्री के बयान को असावधान शब्दों का चयन बताया.

हालांकि, मंत्री गोविंद राजपूत की ओर से वीडियो वायरल होने के बाद अभी तक कोई लिखित या आधिकारिक स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावी माहौल में ऐसा बयान विवाद और गलतफहमी दोनों पैदा कर सकता है. मामला अब केवल एक बयान का नहीं रह गया है, बल्कि यह सवाल उठने लगा है कि क्या सरकार के मंत्री संवेदनशील मुद्दों पर भाषण देते समय पर्याप्त सावधानी बरतते हैं या नहीं.

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