MP High Court Justice Retirement: आमतौर पर रिटायरमेंट के अवसर पर विदाई समारोह भावुक लेकिन सौहार्द्रपूर्ण होते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस दुप्पला वेंकट रमण की विदाई एक असाधारण क्षण में बदल गई. ऐसा क्षण जिसने न्यायपालिका की संवेदनशीलता, पारदर्शिता और मानवीयता पर गहरे प्रश्न खड़े कर दिए. भले ही दिए भाषण को वे स्थिर आवाज में बोल पाए, लेकिन उनके शब्दों में पीड़ा और तिरस्कार साफ तौर पर महसूस किया गया.

उन्होंने कहा, "भगवान न माफ करता है, न भूलता है." उनके ये शब्द सिर्फ आस्था की अभिव्यक्ति नहीं थे, बल्कि व्यवस्था से मिले अन्याय के खिलाफ गूंजता हुआ एक न्यायाधीश का दुःख भरा प्रतिरोध था. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें दुर्भावनापूर्ण मंशा से आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया, जबकि उन्होंने कर्नाटक जाने का विकल्प इसलिए चुना था, ताकि उनकी पत्नी को बेहतर इलाज मिल सके.

उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी कोविड-19 के बाद पीएनईएस (Paroxysmal Non-Epileptic Seizures) और मस्तिष्क संबंधित जटिलताओं से जूझ रही हैं. जस्टिस ने बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को 19 जुलाई और 28 अगस्त 2024 को दो बार इस बारे में लिखित आवेदन दिए, लेकिन न तो उन्हें कोई जवाब मिला और न ही उनका आग्रह माना गया.

प्रताड़ित करने के लिए जारी किया गया आदेश- जस्टिस रमणउन्होंने अपने संबोधन में बहुत दुख के साथ कहा, “मुझसे विकल्प पूछे गए, मैंने कर्नाटक को चुना ताकि पत्नी का इलाज NIMHANS में हो सके. लेकिन मेरी मानवीय गुहार को अनसुना कर दिया गया.” उन्होंने कहा कि ट्रांसफर में बदले की भावना की बू आती है और उन्हें प्रताड़ित करने के लिए यह आदेश जारी किया गया था.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस से भी अपील की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. उन्होंने यह भी कहा, “मैं उनके अहंकार को संतुष्ट करने के लिए खुश हूं. वे अब सेवानिवृत्त हैं. ईश्वर उन्हें उनके कर्मों का फल देगा.” हालांकि, उनके भाषण में गरिमा और आत्मसम्मान बना रहा.

मार्टिन लूथर किंग जूनियर के शब्दों का किया जिक्रजस्टिस रमण ने अपने जीवन के संघर्षों की झलक दी और बताया कि एक प्रथम पीढ़ी के वकील के रूप में उन्होंने गरीबी, संघर्ष, और सामाजिक असमानताओं का सामना किया है. उन्होंने मार्टिन लूथर किंग जूनियर के शब्दों का जिक्र करते हुए कहा, “एक व्यक्ति की असली पहचान आराम और सुविधा के समय में नहीं, बल्कि संघर्ष और विवाद के समय में होती है.” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में रहते हुए वह हमेशा आम आदमी को न्याय दिलाने के लक्ष्य पर केंद्रित रहे. उन्होंने कहा कि उन्हें षड्यंत्रपूर्ण निगरानी का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः सत्य की ही विजय होती है.

एमपी हाईकोर्ट में मिला अपार प्रेम और सहयोग- दुप्पला वेंकट रमणभले ही उनका स्थानांतरण उनके अनुरूप नहीं हुआ, पर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मध्य प्रदेश में उन्हें अपार प्रेम और सहयोग मिला. उन्होंने कहा, “मुझे जबलपुर और इंदौर के जजों और वकीलों से भरपूर सहयोग मिला.” उन्होंने आंध्र प्रदेश से मध्य प्रदेश तक की अपनी न्यायिक यात्रा को गर्व के साथ याद किया और कहा कि उन्होंने अमरावती, कृष्णा, गोदावरी और नर्मदा की धरती पर न्याय की सेवा की है. अपने 30 वर्ष के न्यायिक सफर की झलक देते हुए उन्होंने कहा कि संघर्षों और कड़वे अनुभवों ने उन्हें मजबूत बनाया.