Jabalpur News: मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण (Reservation) का मामला उलझता ही जा रहा है.अब मध्य प्रदेश सरकार हाईकोर्ट में चल रहे सभी 66 मामलों को सुप्रीम कोर्ट ले जाना चाहती है.एमपी हाईकोर्ट के सभी मामले शीर्ष कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए राज्य सरकार की ओर से दायर अर्जी पर 28 अप्रैल सुनवाई होगी.वैसे,मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में इस मामले पर पहले से 24 अप्रैल को सुनवाई निर्धारित है.


क्या है पूरा मामला


यहां बता दें कि शुक्रवार को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण देने या न देने के मसले को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं पर अब एक नया मोड़ आ गया. हाई कोर्ट की ओर से याचिकाओं के निपटारे के लिए प्रतिदिन सुनवाई करने के आदेश के बाद राज्य सरकार ने नया दांव चल दिया.अब इस मुद्दे पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है.सरकार की ओर से सभी 66 याचिकाओं को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने के लिए अर्जी दायर की गई है.


दरअसल,पिछले चार सालों से लंबित अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण देने के विरोध और पक्ष में लंबित प्रकरणों पर हाईकोर्ट में 18 अप्रैल से नियमित सुनवाई शुरू हुई थी.कोर्ट ने कहा था कि मामले के लंबित रहने के कारण प्रदेश भर में हजारों विद्यार्थी असमंजस में हैं. उनका भविष्य दांव पर लगा है.कोर्ट को इस संबंध में हर रोज एक सैकड़ा से अधिक पत्र मिल रहे हैं. कोर्ट ने कहा था कि अब यह मामला डे-टू-डे बेसिस पर सुना जाएगा.किंतु,राज्य शासन की ओर से मामले में अतिरिक्त मोहलत मांगते हुए केस बढ़ाने की मांग की गई थी.कोर्ट ने अतिरिक्त मोहलत देने से इनकार कर दिया था.


हाई कोर्ट की विशेष बेंच कर रही है सुनवाई


गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए विशेष बेंच बनाई है.इनमें से कुछ याचिकाएं नौकरी और शिक्षण संस्थाओं ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के विरोध में दाखिल की गई हैं,जबकि कुछ याचिकाएं समर्थन में दायर हैं. वहीं,ओबीसी एससी-एसटी एकता मंच की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई है.याचिका में हाईकोर्ट की ओर से 20 मार्च 2023 को एक आवेदन में पारित आदेश की वैधानिकता को चुनौती दी गई है.


सरकार के विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि हाईकोर्ट ने न्यूट्रल बेंच गठित करने का आवेदन खारिज कर दिया था.इस आवेदन पर विचार के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आवेदन में सुनवाई करने वाली बेंच के न्यायाधीशों के विरुद्ध कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए गए हैं, इसलिए निष्पक्ष बेंच गठित किया जाना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है.


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