MP Election Result 2023: मध्य प्रदेश के खरगोन की जनता प्रदेश का राजनीतिक मिजाज पहले ही भांप लेती है और इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि खरगोन का गढ़ जीतने वाली पार्टी ही सत्ता तक पहुंचने में कामयाब हो पाती है. पिछले 12 विधानसभा चुनावों में चली आ रही यह परंपरा इस बार भी कायम रही. राज्य में बीजेपी ने जहां 163 सीटों पर कब्जा जमाकर अपनी सत्ता बरकरार रखी, वहीं कांग्रेस केवल 66 सीटों पर सिमट गई. 


खरगोन विधानसभा सीट पर बीजेपी के बालकृष्ण पाटीदार ने कांग्रेस के रवि जोशी को 13,765 मतों से पराजित किया. पाटीदार को कुल 1,01,683 मत मिले वहीं जोशी को 87,918 मत मिले. आजादी के बाद मध्य प्रदेश में अब तक कुल 16 विधानसभा चुनाव हुए हैं और इनमें से 15 बार राज्य में उसी दल की सरकार बनी है, जिसने खरगोन विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया. साल 1972 से लेकर अब तक हुए पिछले सभी 12 चुनावों में यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा और इस बार भी खरगोन जीतने वाली पार्टी को ही सत्ता हाथ लगी.


2018 में कांग्रेस प्रत्याशी को मिली जीत
मध्य प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनाव (2018) में कांग्रेस ने बीजेपी के 15 सालों के शासन का अंत किया था और फिर से राज्य की सत्ता में लौटी थी. खरगोन की जनता ने प्रदेश का राजनीतिक मिजाज पहले ही भांप लिया था. उसने बीजेपी उम्मीदवार को नकार दिया. कांग्रेस के रवि जोशी ने यहां से लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले बालकृष्ण पाटीदार को पटखनी दी. इस चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कमलनाथ के हाथों में आया. हालांकि, उनकी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई और बीजेपी फिर सत्ता में लौटी. शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.


निवास से केंद्रीय मंत्री को मिली हार
खरगोन के अलावा राज्य की तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले नौ विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की जनता ने जिसे चुना, उसी दल की राज्य में सरकार बनी. इनमें बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट, मंडला जिले की निवास सीट और बड़वानी जिले की सेंधवा सीट शामिल है. हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में नेपानगर में सत्ता के साथ जाने का क्रम तो बना रहा लेकिन निवास और सेंधवा सीट में यह सिलसिला टूट गया. नेपानगर में बीजेपी की मंजू राजेंद्र दादू ने कांग्रेस की गेंदू बाई को 44,805 मतों से पराजित किया. निवास सीट पर बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा था लेकिन उन्हें कांग्रेस के चैन सिंह वरकड़े से हार का सामना करना पड़ा. सेंधवा में बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य को कांग्रेस के मोंटू सोलंकी ने पराजित किया.


खरगोन सीट का इतिहास
साल 1977 से लेकर 2018 तक हुए सभी चुनावों में खरगोन के साथ ही नेपानगर, निवास और सेंधवा सीट के परिणाम भी उसी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में गए, जिसने सत्ता हासिल की. खरगोन विधानसभा चुनाव के अब तक के इतिहास में सिर्फ एक ही अवसर ऐसा आया, जब वहां की जनता ने जिस दल के उम्मीदवार को जिताया, राज्य में उसकी सरकार नहीं बनी. साल 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही यह सीट अस्तित्व में आ गई थी. उन दिनों मध्य प्रदेश, मध्य भारत का हिस्सा था. राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप 1956 में मध्य प्रदेश एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया.


1962 में खरगोनवासी हवा का रुख समझने में रहे नाकाम
पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में खरगोन से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और राज्य में सरकार भी कांग्रेस की ही बनी. उन दिनों रवि शंकर शुक्ल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. साल 1962 का विधानसभा चुनाव ही ऐसा था, जब निमाड़ अंचल के खरगोन की जनता ने राज्य के मतदाताओं के सियासी मूड के अनुरूप मतदान नहीं किया. इस चुनाव में खरगोन की जनता ने जन संघ के उम्मीदवार भालचंद्र बगडारे को चुनकर विधानसभा भेजा, लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और भगवंत राव मंडलोई मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए. इससे पहले भी वह 31 दिनों तक इस पद पर रह चुके थे. मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद मंडलोई को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया था.


साल 1967 और 1972 के विधानसभा चुनावों में कपास की खेती के लिए मशहूर खरगोन जिले की इस विधानसभा सीट (खरगोन) पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया और राज्य में कांग्रेस की ही सरकार बनी. इसके बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में (2023 तक) भी यह सिलसिला बरकरार रहा कि जिस पार्टी के उम्मीदवार को खरगोन से जीत मिली, उसी पार्टी की सरकार राज्य में सत्ता में आई.


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