MP Election 2023: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बीजेपी और कांग्रेस आदिवासी वोटबैंक को साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं. दोनों ही पार्टी मानकर चल रही हैं कि, यह वर्ग साथ आया तो उनकी चुनावी नैया पार लग जाएगी. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदिवासी क्षेत्र शहडोल अंचल में आए तो अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इसी जिले में दौरा करने आ रहे हैं.


दरअसल, शहडोल को महाकौशल के आदिवासी अंचल का केंद्र माना जाता है. कुछ दिन पहले ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मालवांचल में आदिवासियों के गढ़ मोहनखेड़ा में आकर जनसभा को संबोधित कर चुकी हैं. वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी की जनआशीर्वाद यात्रा का शुभारंभ आदिवासी बहुल जिले मंडला से किया था. जाहिर है कि बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही मान कर चल रही हैं कि आदिवासी वोट जिस करवट बैठा, सरकार उसकी ही बनेगी. मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 में से आदिवासी वर्ग के लिए 47 आरक्षित सीटें हैं.


पार्टियां आदिवासी वोटबैंक पर बना रहीं पकड़ 
वहीं मध्य प्रदेश में जब भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, तब-तब आदिवासी वोटबैंक ने ही निर्णायक भूमिका अदा की है. पिछले तीन महीने में बीजेपी ने अनुसूचित जनजाति मोर्चे और उससे जुड़े नेताओं की कई बड़ी बैठकें बुलाई. इस वर्ग के पार्षद, पंच, सरपंच से लेकर जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य, नगर पालिका, नगर पंचायत के पदाधिकारी सभी को चुनाव में सक्रिय किया गया. इसका मकसद साफ था कि, हर हाल में आदिवासी वोटबैंक पर पकड़ बनी रहे.


कई बार कांग्रेस-बीजेपी आदिवासी के भरोसे रही
संयुक्त मध्य प्रदेश के दौर में भी 1990 में बीजेपी की सरकार सिर्फ आदिवासी सीटों के भरोसे बनी थी. 1993 और 1998 में जब यही वोटबैंक कांग्रेस में चला गया तो कांग्रेस की सरकार बनी. 2003 चुनाव में अदिवासी बीजेपी के साथ आए, तब प्रदेश में आदिवासी सीटों की संख्या 41 थी, जिनमें से बीजेपी को 34 और कांग्रेस को सिर्फ दो सीट मिली थी. परिसीमन के बाद 2008 के चुनाव में अजा सीट 47 हो गई, लेकिन बीजेपी के खाते में 29 सीट आई. इस चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. 2013 के चुनाव में बीजेपी को 31 और कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं.


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