मध्य प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री और नगर प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भोपाल में आयोजित शहरी विकास की क्षेत्रीय बैठक में बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि राजनीतिक मजबूरियों के चलते की गई घोषणाओं को पूरा करना अब राज्यों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. उन्होंने शहरी विकास के लिए केंद्र सरकार से पर्याप्त बजट सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया और मौजूदा वित्तीय हालात को गंभीर बताया है.
शहरी विकास और 2047 के लक्ष्य पर सरकार की सोच
कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि प्रधानमंत्री जब भी देश के भविष्य की बात करते हैं, तो अर्बनाइजेशन को लेकर उनकी चिंता स्पष्ट दिखाई देती है. प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि 2047 तक भारत एक विकसित देश बने और इसमें शहरों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी. उन्होंने कहा कि शहरों को ड्राइविंग सीट पर बैठकर अपने आसपास के क्षेत्रों के विकास की जिम्मेदारी लेनी होगी. मंत्री ने बताया कि वे पहले भी इसी विभाग के मंत्री रह चुके हैं और तब से लेकर अब तक केंद्र सरकार से बड़े पैमाने पर योजनाएं और फंड आ रहे हैं, जिनके लिए प्रशासनिक क्षमता को लगातार बढ़ाना पड़ा है.
राजनीतिक मजबूरियां और बिगड़ता बजट संतुलन
मंत्री विजयवर्गीय ने साफ शब्दों में कहा कि राज्यों के बजट की हालत बेहद खराब हो गई है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह राजनीतिक मजबूरियां हैं, जिनके चलते चुनावों के दौरान कई बड़े कमिटमेंट कर दिए जाते हैं. उन्होंने कहा कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए जितना बजट अपेक्षित होता है, वह अब मिल पाना मुश्किल हो गया है. मंत्री ने दोहराया कि इसी कारण विकास कार्यों में दिक्कतें आ रही हैं और राज्यों को केंद्र सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखना पड़ रहा है.
अमृत योजना, आत्मनिर्भर नगर निगम और सोलर ऊर्जा
कैलाश विजयवर्गीय ने अमृत योजना का जिक्र करते हुए कहा कि देश के लगभग सभी राज्यों में इस योजना के तहत कई काम अधूरे हैं. उन्होंने बताया कि शहरों को मिलने वाला बजट करीब 70 प्रतिशत तक कम हो गया है और करीब 30 प्रतिशत कार्य अभी बाकी हैं. ऐसे में यदि केंद्र सरकार सहयोग करे, तो इन योजनाओं को पूरा किया जा सकता है. मंत्री ने आत्मनिर्भर नगर निगम की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि प्रॉपर्टी मैपिंग सिस्टम के जरिए संपत्ति कर में करीब डेढ़ सौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है. इसके साथ ही ऊर्जा क्षेत्र में सोलर एनर्जी को अपनाया जा रहा है और लगभग 250 मेगावाट क्षमता का खुद का सोलर प्लांट तैयार किया जा रहा है, जिससे राज्यों के बिजली खर्च में भी बड़ी कटौती संभव होगी.