Makar Sankranti 2023: इस बार 15 जनवरी दिन रविवार को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है. मकर संक्रांति पर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है. शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना करने से जन्म कुंडली का नकारात्मक प्रभाव दूर हो सकता है. इस बार कई दशक बाद विशेष योग बन रहा है. इसलिए ज्योतिषाचार्य और धर्माचार्यों ने शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना और दान धर्म की सलाह दी है.
पंडित अमर डिब्बेवाला का कहना है कि माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर 15 जनवरी को चित्रा नक्षत्र सुकर्मा योग, बालव करण और तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में मकर संक्रांति का पुण्य काल होगा क्योंकि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी को रात्रि 8:50 पर होने से पर्व काल अगले दिन माना जाता है. इस दृष्टि से धर्म शास्त्रीय मतानुसार 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्य काल रहेगा. इस दिन सूर्योदय से लेकर दिनभर दान पुण्य किए जा सकेंगे.
दिन भर कर सकेंगे दान, तीर्थ और तर्पणपंडित अमर डिब्बेवाला ने बताया कि धनुर्मास की संक्रांति समाप्त होते ही मकर राशि में सूर्य प्रवेश करता है. अलग-अलग प्रकारों से शास्त्रीय महत्व वाले दान पुण्य का अनुक्रम शुरू हो जाता है. मकर संक्रांति महापर्व काल के दौरान चावल, मूंग की दाल, काली तिल्ली, गुड, ताम्र कलश, स्वर्ण का दाना, ऊनी वस्त्र का दान करने से सूर्य की अनुकूलता, पितरों, भगवान नारायण की कृपा के साथ ही महालक्ष्मी की प्रसन्नता देने वाला सुकर्मा योग भी सहयोग करेगा. मान्यता है कि इन योगों में संबंधित वस्तुओं का दान पितरों को तृप्त करता है. जन्म कुंडली के नकारात्मक प्रभाव को भी दूर करता है और धन-धान्य की वृद्धि करता है.
रविवार को सूर्य के मकर संक्रांति का पुण्य काल विशेष लाभ देने वाला बताया गया है. रविवार के दिन सूर्य विशेष परिमंडल में अनुगमन करता है. साथ ही अग्नि पुराण की मान्यता अनुसार सूर्य का पूजन शिवलिंग के साथ संयुक्त रूप से पूजित करने पर संतान की बौद्धिक अनुकूलता के लिए श्रेष्ठ बताया गया है. यही कारण है कि इस दिन सूर्य की पूजन और भगवान शिव का अभिषेक विशेष रूप से करना चाहिए.
ऐसा करने से होता है भाग्योदयपर्व काल को श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण बनाने के लिए सूर्य शनि, शुक्र का विशिष्ट युति संबंध में होना भी महत्व रखता है. पिता पुत्र दोनों का ही एक राशि में होना, संयुक्त रूप से शुक्र का भी राशि पर परिभ्रमण करना या मकर राशि पर तीनों ग्रहों का संयुक्त होना, अपने आप में विशिष्ट माना जाता है. यह एक प्रकार से शश योग और मालव्य योग का निर्माण कर रहा है. इस दृष्टि से इस युति में शुभ कार्य, दान, पुण्य, तीर्थ यात्रा, भागवत महापुराण, श्रवण आदि करने से भी भाग्योदय होता है.
दशकों में बनते हैं शश और मालव्य योगकेंद्र में शनि केंद्राधिपति या त्रिकोण अधिपति या स्वयं की राशि में गोचरस्थ हो एवं शुक्र वर्गोत्तम या केंद्राधिपति होकर अनुकूल युति बनाते हो तो वह भी मालव्य योग की श्रेणी में माने जाते हैं. इस दृष्टि से इस प्रकार के संयोग दशकों में आते हैं अर्थात कई समय बाद इस प्रकार के योगों का निर्माण होता है. इस दृष्टि से भी इसे मकर संक्रांति का पुण्य काल महत्वपूर्ण है.
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