Madhya Pradesh Siyasi Scan: ये उन दिनों की बात है, जब 1992 में बाबरी कांड के बाद मध्य प्रदेश में सुंदरलाल पटवा की बीजेपी सरकार बर्खास्त कर दी गई थी. कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद 1993 में नए चुनाव हुए. अविभाजित एमपी की कुल 320 में से 174 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सत्ता में वापसी कर ली. अब पेंच फंसा कि प्रदेश का अगला सीएम कौन? उन दिनों मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कई नेता थे, जो खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताने लगे, लेकिन अंत में दिल्ली से आए एक कॉल ने उस नेता की किस्मत बदल दी, जिसने बाद में दस साल तक मध्य प्रदेश की राजनीति में अंगद की तरह अपने पैर जमाये रखे थे. आज एमपी के 'सियासी किस्सा' सीरीज में उसी दिग्गज नेता की बात होगी.


कई नेताओं के बीच हुई खींचतान
दरअसल, 1993 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बहुमत कांग्रेस के हाथ लगी. चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर अर्जुन सिंह, कमलनाथ, माधवराव सिंधिया और श्यामचरण शुक्ल जैसे दिग्गज नेताओं के बीच खींचतान शुरू हो गई थी. वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि राजधानी भोपाल में विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा चर्चा श्यामचरण शुक्ल के नाम की थी. लेकिन श्यामाचरण शुक्ल के धुर विरोधी अर्जुन सिंह ने पिछड़े वर्ग से आने वाले सुभाष यादव का नाम आगे बढ़ाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई को कठिन बना दिया. अर्जुन सिंह यह जानते थे कि सुभाष यादव को ज्यादा विधायकों का समर्थन नहीं मिल पाएगा. लेकिन उनके मन की थाह लेना किसी के लिए आसान नहीं था. दरसअल,उनकी पहली पसंद तत्कालीन पीसीसी चीफ और सांसद दिग्विजय सिंह थे.


बैठक से उठकर चले गए कमलनाथ
काशीनाथ बताते हैं कि इसी बीच दिल्ली में सीएम का नाम चुनने के लिए एक अलग से बैठक हुई, जिसमें अर्जुन सिंह के साथ कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अजीत जोगी और सुभाष यादव मौजूद थे. यहां जीन्स-टी शर्ट पहन कर पहुंचे कमलनाथ ने कहा,"कांग्रेस को बहुमत मिल गया है. अब वे मुख्यमंत्री बना सकते है. कैसा रहेगा अगर मैं सीएम बनूं तो?" कहते है कि इस बात से नाराज अर्जुन सिंह ने कहा कि एमपी की जनता आपको स्वीकार करेगी, यह कहा नहीं जा सकता? यह कहकर वो बैठक से चले गए. तब अजीत जोगी ने दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह को अर्जुन सिंह को मनाने उनके बंगले भेजा. अर्जुन सिंह ने उनसे कहा,"जाओ कमलनाथ को तैयार करो. मैं प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को तैयार करता हूं." हालांकि, इस सब के बावजूद दिग्विजय सिंह के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी अभी बहुत दूर थी.


माधवराव सिंधिया भी थे दावेदार
वहीं, गांधी परिवार से बेहद नजदीकी रखने वाले माधवराव सिंधिया भी ग्वालियर-चंबल के अपने करीब 15 विधायकों के समर्थन को लेकर कुछ बोल नहीं रहे थे. उसी दौरान भोपाल में विधायक दल की एक बैठक हुई, जो करीब चार घंटे तक चली. इस बैठक में कांग्रेस आलाकमान के पर्यवेक्षक के तौर पर प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी शामिल हुए थे. बैठक के बाद कमलनाथ यह समझ चुके थे कि मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत नहीं है. ऐसे में उन्होंने अपने कदम पीछे खींचने में ही भलाई समझी. दरअसल, इसके पीछे विधायक दल की बैठक से पहले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच आपसी सहमति को भी जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें यह तय हुआ था कि मुख्यमंत्री पद के लिए उसी नेता का नाम आगे किया जाए, जिस पर आम सहमति बन सके. 


कमलनाथ ने बढ़ाया आगे नाम
विधायक दल की बैठक के दौरान पहली बार दिग्विजय सिंह के नाम पर चर्चा की गई. कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने ही दिग्विजय सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए रखा. विधायक दल की बैठक के दौरान किसी एक नेता के नाम पर सहमति नहीं बनी. वैसे बैठक के बाद कमलनाथ और माधव राव सिंधिया मुख्यमंत्री पद की रेस से हट गए थे और मैदान में श्यामचरण शुक्ल के सामने दिग्विजय सिंह बचे थे. ऐसे में प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान की राय दी. अर्जुन सिंह की सहमति और कमलनाथ, माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह के आपसी गठजोड़ के कारण फैसला श्यामाचरण शुक्ल के खिलाफ गया.


मिला 100 से ज्यादा विधायकों का साथ
दरअसल, 174 विधायकों में से 100 से अधिक विधायकों ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मतदान किया. वहीं, 56 विधायकों ने श्यामचरण शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी. इसके बाद कमलनाथ ने विधायकों के फैसले की जानकारी पार्टी हाईकमान को दी. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आलाकमान संस्कृति की परंपरा के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पी वी नरसिम्हा राव ने प्रणब मुखर्जी को फोन किया और कहा कि जिसके पक्ष में ज्यादा विधायकों का समर्थन है, उन्हें मुख्यमंत्री बना दीजिए. इस तरह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद तमाम दावेदारों को पटखनी देते हुए दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बन गए थे. इसके बाद अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को निपटाते हुए दस साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे. 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने दिग्विजय सिंह को 'मिस्टर बंटाधार' का तमगा देते हुए चुनाव में बड़ी शिकस्त दी थी


दो बार जीता MLA का चुनाव
यहां बता दें कि 72 साल के दिग्विजय ने अपना पिछला चुनाव 2019 में भोपाल लोकसभा सीट से लड़ा था, जिसमें उन्हें प्रज्ञा ठाकुर ने परास्त किया था. दिग्विजय सिंह इसके पहले दो बार 1984 और 1991 में राजगढ़ से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. वहीं, 1989 में उन्हें राजगढ़ से ही बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल से हार का मुंह देखना पड़ा था. 1994, 1998 और 2003 में उन्होंने राघौगढ़ विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव जीता था.


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