Madhya Pradesh News: साल 2015 में जबलपुर (Jabalpur) को स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट (State Cancer Institute) का सपना दिखाया गया था. 135 करोड़ की लागत से प्रोजेक्ट को 4 साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन 7 साल बीतने के बाद भी यह सपना पूरा नहीं हो सका है. बिल्डिंग तो जैसे-तैसे बन गई है लेकिन अभी मशीनों का कोई अता-पता नहीं है. बता दें कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज (Netaji Subhash Chandra Bose Medical College) में न सिर्फ संभाग बल्कि पूरे महाकोशल, विंध्य और बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों से कैंसर के मरीज (Cancer Patients) उपचार के लिए आते हैं. 


जानकारी के अनुसार मेडिकल कॉलेज के कैंसर हॉस्पिटल (Cancer Hospital) में नए और पुराने मिलाकर रोजाना 100 से 150 मरीज आते हैं. मरीजों की संख्या के मुकाबले यहां 53 बिस्तर ही हैं जिनमें 23 पुरुष और 30 महिलाओं के इलाज के लिए हैं. सीमित बिस्तर और स्टाफ होने के चलते कई मरीजों को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है.


पुरानी बिल्डिंग में हो रहा इलाज
जबलपुर में नए बन रहे स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट में उपचार का ख्वाब लेकर आने वाले मरीजों को अभी केवल वार्ड ही नसीब हो पा रहा है, पूरा उपचार अभी भी कैंसर अस्पताल की पुरानी बिल्डिंग से होता है. यहां आने वाले मरीजों की संख्या को देखते हुए कॉलेज में स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट का निर्माण 2015 में शुरू हुआ था. काम पूरा होने की डेटलाइन दो बार निकल चुकी है. फिलहाल स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट की बिल्डिंग बनकर तैयार है लेकिन अब तक कॉलेज को हैंडओवर नहीं हुई है.


आधुनिक मशीनों की भी कमी
कहा जा रहा है कि यदि बिल्डिंग हैंडओवर हो भी गई तब भी बिना आधुनिक मशीनों के कैंसर का उपचार शुरू नहीं हो सकेगा. यहां लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगाई जानी है जो कि राज्य शासन द्वारा प्रदान की जाएगी. जिस गति से यह प्रोजेक्ट चल रहा है, लोगों का कहना है कि मशीन आने में और भी वक्त लगेगा. हाल ही में इंस्टिट्यूट की नई बिल्डिंग में एक महिला वार्ड शुरू कर दिया गया है. चार साल में 135 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट में कुल 200 बेड की व्यवस्था की जानी थी. इसमें आईसीयू बेड की संख्या 40 रखी गई थी. इसमें 50 करोड़ रुपए से भवन निर्माण और 85 करोड़ रुपए से अन्य संसाधन जुटाने थे.


आधुनिक मशीन का इंतजार
स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट में जो मशीनें लगाई जानी हैं उनमें सबसे प्रमुख लीनियर एक्सीलेटर मशीन है. यह थैरेपी में प्रयोग की जाने वाली कोबाल्ट मशीन का आधुनिक रूप है. यह ज्यादा सुरक्षित और बेहतर होती है. जानकारों का कहना है कि जब तक यह मशीन नहीं आ जाती है, तब तक नए भवन में मरीज तो भर्ती हो सकेंगे लेकिन कैंसर के उपचार में जरूरी थैरेपी नहीं मिलेगी. इंस्टिट्यूट बनने के बाद कैंसर मरीजों के लिए आधुनिक वार्ड और सर्जिकल फैसेलिटी बढ़ेगी. इलाज की एडवांस थैरेपी मशीनें लगेंगी. 6 आधुनिक ऑपरेशन थियेटर उपलब्ध हो जाएंगे. बिस्तर बढ़ने से मरीजों की वेटिंग भी कम होगी.


कैंसर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. लक्ष्मी सिंगोतिया के मुताबिक अभी बिल्डिंग हैंडओवर नहीं हुई है. इसके बाद भी मरीजों को राहत देने के लिए हमने महिला वार्ड शुरू कर दिया है. लीनियर एक्सीलेटर मशीन भोपाल से मिलनी है, जिसकी प्रक्रिया चल रही है.


एक नजर प्रोजेक्ट पर-


• 2014 में प्रोजेक्ट की घोषणा
• 2015 में भवन निर्माण शुरू
• 135 करोड़ रुपए की योजना
• 2018 से शुरू होना था उपचार


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