Indore Holi 2024: इंदौर के राजवाड़ा में प्रदोष काल में सरकारी होलिका का दहन परंपरानुसार किया गया. होलकर राजवंश के रिचर्ड होलकर ने इस अवसर पर होलिका दहन किया. होलिका दहन का यह 296वां साल था. इससे पहले होलिका का पंचामृत से अभिषेक किया गया. इसके बाद गणेश पूजा कर होली का आह्वान किया गया.


साल 1920 में महाराज होलकर द्वारा एक पुस्तक बनवाई गई, जिसे नाम दिया गया उत्सव दर्शन. उत्सव दर्शन वह किताब थी, जिसके अंदर रियासत के तमाम तीज त्योहारों को शब्दों में पिरोया गया था. खास तौर पर होली, रंग पंचमी और गैर का जिक्र पुस्तक में मिलता है. हालांकि बहुत सारे तीज और त्यौहार रियासत के दौर में लुप्त हो गए या खत्म हो गए.


होली में निभाई जाती थी ये रस्में
इंदौर में होली का फाग महोत्सव 15 दिन तक बड़ी शानो शौकत से मनाया जाता था. जैसे ही होली का डंडा रियासत में लगता था, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को हिदायत दी जाती थी कि वह प्राकृतिक फूल जैसे टेसू के फूल और तमाम फ्लावर्स को कलेक्ट कर नेचुरल कलर का निर्माण करें. इसके लिए सैकड़ों लोग इस काम में लग जाते थे, महीने भर की परिश्रम के बाद एक बहुत बड़ी तादाद में नेचुरल कलर तैयार किया जाता था.


रियासत के दौर में होली की तैयारी दोपहर 3 बजे तक कर ली जाती थी और रंग रोगन और साज सज्जा होती थी. इस इलाके में होली की तैयारी के लिए ढाले परिवार के यहां से होली की अग्नि आती थी. जिसे महाराज होलकर हस्त स्पर्श करते थे और फिर वह प्रज्वलित होती थी. उसके बाद होलकर रियासत का राष्ट्रगान होता और राष्ट्रगीत होता था. 


होलकर आर्मी के प्लाटून के 20 घुड़सवार पांच-पांच राउंड फायर करते थे और किले से तोप चलने की एक बड़ी जोरदार आवाज आती थी. ये तोप 5 बार दागी जाती थी. जिससे पूरे शहर को यह मालूम होता था कि होली का फाग उत्सव राजबाडा से 15 दिन के लिए शुरू हो चुका है. इसके बाद महाराज होलकर होली की परिक्रमा कर राजबाड़े में दाखिल होते थे.


होली पर महाराजा होलकर देते थे कीमती भेंट
होलकर वंश में युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में होली के दूसरे दिन एक वीर परंपरा की रिवायत थी. इस रिवायत के तहत जो वीर थे, वह हाथ में ढाल और तलवार लिए हुए राजबाड़े के सामने से गाजे बाजे के साथ निकलते थे. होलकर रियासत के राज पुरोहित उनकी पूजा करते थे. उसके बाद महाराजा होल्कर जवाहर खाने से उनको आभूषण जैसे चांदी की छतरी, चांदी की कवर आदि देते थे. इसके बाद, पूजा के लिए प्राचीन वनखंडी मारुति मंदिर राजबाडा के सामने भगवान हनुमान के मंदिर आते थे और वहां पूजा करने के पश्चात वापस राजवाड़े की ओर लौटते थे. जहां पर उन्हें सेवइयां और खीर खिलाने की रस्म पूरी की जाती थी.


मिल श्रमिक नेता और मजदूरों ने की गैर की शुरुआत
भारत की आजादी के साथ रियासत का दौर खत्म हो गया. साल 1950 में एक नई शुरुआत हुई और वह शुरुआत इंदौर की गैर जाने रंग पंचमी पर निकलने वाली गैरों से हुई. टोरी कॉर्नर इंदौर का मशहूर इलाका था, जहां से मिल श्रमिक नेता और मिल मजदूरों ने मिलकर इसकी शुरुआत की.


इस मौके पर यह बताना बेहद जरूरी है कि टोरी ब्रिटानिया हुकूमत की एक पॉलीटिकल पार्टी का नाम था. ये इंग्लैंड के अंदर एक लेबर पार्टी हुआ करती थी. जिसको संक्षिप्त में टोरी कहते थे और इंदौर के श्रमिक नेता उससे बहुत प्रभावित थे. यहां के मिल में काम करने वाले लोगों ने इस चौराहे का नाम यानि कॉर्नर का नाम टोरी कॉर्नर कहना शुरू किया.


ऐसे तैयार होते होता थे विशेष रंग
साल 1950 के दशक में इसी स्टोरी कॉर्नर पर बड़े-बड़े कड़ाव साबुन फैक्ट्री से मंगाए जाते थे और उनमें केसरिया रंग डाला जाता था. इसी का रंग को और लोगों को कड़ाव में डाला जाता था. यह शुरुआत थी इंदौर की नई गैर की. उस जमाने के मशहूर बाबूलाल गिरी, रंगनाथ कार्णिक पहलवान, बिंडी पहलवान आदि ने मिलकर इसकी शुरुआत की और शुरुआती दौर में सिर्फ दो बैलगाड़ियों पर यह रंगारंग गैर टोरी कॉर्नर से राजवाड़ा लाई गई. 


बाद में बैलगाड़ियों की तादाद बढ़ती गई. इसमें मालवा निमाड़ के आदिवासियों की टुकड़ी भी शामिल होने लगी और साल दर साल बाद इसका भव्य रुप वर्तमान में हमें दिखाई देता है. इंदौर की इस पुरानी रिवायत और नई रिवायत को मिलाकर एक ऐसी तस्वीर बनी, जिसने इंदौर को भारत में नहीं विश्व में मशहूर किया.


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