Jharkhand News: उत्तराखंड (Uttarakhand) में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग (Silkyara Tunnel) में हादसे के कारण फंसे 41 श्रमिकों में से तीन झारखंड के एक गांव खीराबेड़ा के निवासी हैं. बचाव अभियान अवरुद्ध होने से ग्रामीण काफी चिंतित हैं. लकवाग्रस्त श्रवण बेदिया (55) का इकलौता बेटा राजेंद्र सुरंग में फंसे श्रमिकों में एक है. बेदिया भले ही बिस्तर से उठ नहीं सकते, लेकिन बेटे की चिंता उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही है. राजेंद्र (22) के अलावा गांव के सुखराम और अनिल भी सुरंग में फंसे हैं. सुखराम की मां पार्वती भी लकवाग्रस्त हैं और इस घटना के बारे में पता चलने के बाद से काफी दुखी हैं.
अनिल के घर पर तो दो हफ्तों से चूल्हा तक नहीं जला है और परिवार अपने पड़ोसियों के दिए जा रहे भोजन से ही गुजारा कर रहा है. रांची से उत्तरकाशी में घटनास्थल पर पहुंचे अनिल के भाई सुनील ने कहा, ‘‘हर दिन हम यही सुनते हैं कि अभी दो घंटे लगेंगे, तीन घंटे और लगेंगे. हमें नहीं पता कि उन्हें बाहर निकालने में कितना समय लगेगा. चार दिन पहले ही भाई से बात हो पाई थी.’’ सुनील अब वहीं रह रहे हैं, जहां उनका भाई रहता था.
'जैसे-तैसे रुपयों की व्यवस्था की थी'
सुनील ने कहा, ‘‘जब खाना बांटा जाता है तभी हमें भी खाना मिल जाता है.’’ सुनील भी इसी परियोजना में काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनके जीवन का सबसे कठिन दौर है, क्योंकि अब उनके बूढ़े माता-पिता की देखभाल के लिए गांव में कोई नहीं है और इस खबर के बाद से वे भी सदमे में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘उत्तरकाशी आने के लिए जैसे-तैसे मैंने रुपयों की व्यवस्था की थी.’’ सुखराम की बहन खुशबू ने कहा कि उनके गांव में हर कोई बचाव अभियान की जानकारी के लिए अपने मोबाइल फोन से चिपका रहता है. उन्होंने कहा, ‘‘पूरा गांव सदमे में है क्योंकि हमारे तीन लोग अंदर फंसे हैं.’’
सुरंग के दो किलोमीटर लंबे हिस्से में हैं मजदूर
ग्रामीण राम कुमार बेदिया ने कहा कि एक नवंबर को गांव से 13 लोग उत्तरकाशी सुरंग परियोजना में काम करने के लिए गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘जब आपदा आई, उनमें से तीन सुरंग के अंदर काम कर रहे थे.’’ सुरंग के अंदर मलबे में फंसे ऑगर मशीन के हिस्सों को काटने और हटाने के लिए रविवार को हैदराबाद से एक प्लाज्मा कटर लाया गया है. बचाव कार्य को आगे बढ़ाने के लिए मशीन को पूरी तरह से हटाना आवश्यक है. श्रमिकों को बाहर निकालने का मार्ग तैयार करने के लिए मलबे में हाथ से ड्रिलिंग के जरिए पाइप डालने होंगे. मजदूर सुरंग के दो किलोमीटर लंबे हिस्से में हैं. उन्हें छह इंच चौड़े पाइप के जरिए खाना, दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें भेजी जा रही हैं.
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