नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने शुक्रवार को झारखंड सरकार को पत्र लिखकर पारसनाथ अभयारण्य के संबंध में जैन समुदाय से प्राप्त प्रतिवेदन पर प्राथमिकता के आधार पर विचार करने को कहा है.झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ियों पर स्थित सम्मेद शिखरजी जैन समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ है.जैन समुदाय के सदस्य पारसनाथ पहाड़ियों में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के राज्य सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं.पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के बाद अगस्त 2019 में पारसनाथ अभयारण्य के आसपास एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचित किया था और पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों को मंजूरी दी थी.

जैन समुदाय कर रहा है विरोध

वन महानिदेशक सीपी गोयल ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को लिखे पत्र में शुक्रवार को कहा कि मंत्रालय को जैन समुदाय और अन्य लोगों से कई आपत्तियां मिल रहीं हैं. इनमें उल्लेख किया गया है कि पारसनाथ अभयारण्य जैन आध्यात्मिकता का पवित्र केंद्र है. उक्त ईएसजेड अधिसूचना में शामिल कुछ विकासात्मक गतिविधियों ने उनकी भावनाओं को आहत किया है.जैन समुदाय ने इन गतिविधियों को अधिसूचना से बाहर किए जाने का अनुरोध किया है.

झारखंड सरकार के इस कदम के विरोध में बुधवार को मध्य प्रदेश के कई शहरों में जैन समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था. इसके अलावा देश के कई अन्य शहरों में भी इसी तरह के विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए गए थे.दरअसल, श्री सम्मेद शिखर जी जैन धर्म के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है. जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर भगवान और असंख्य महामुनिराजों ने इसी पवित्र भूमि से तपस्या कर निर्वाण प्राप्त किया है. 

सम्मेद शिखरजी की महत्व

जैन समाज में यह मान्यता है कि सम्मेद शिखरजी के इस क्षेत्र का कण-कण बेहद ही पवित्र है,पूजनीय है.लाखों जैन मुनियों ने इस क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त किया है.जैन समाज के लोग सम्मेद शिखरजी पहुंचकर 27 किलोमीटर के दायरे में फैले मंदिर-मंदिर जाते हैं और वंदना करते हैं.जैन धर्म के लोग वंदना के बाद ही कुछ खाते-पीते हैं.

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