जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में 2016 के सुरक्षा बलों पर हमले के मामले में एक बड़ा फैसला आया है. जिला एवं सत्र अदालत ने पाकिस्तानी आतंकी हंजाल्लाह यासीन राय उर्फ अबू उकासा को 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है.

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अदालत ने कहा कि आरोपी ने हमला करने की बात खुलकर और साफ तौर पर स्वीकार की थी और हमले में किसी भी सुरक्षाकर्मी को चोट नहीं लगी थी, इसलिए यह सजा उपयुक्त है.

हमले में शामिल होने की आरोपी ने खुद मानी बात

पाकिस्तान के बहावलपुर का रहने वाले उकासा ने अदालत में बताया कि वह 2016 में सुरक्षा बलों पर हुए हमले में शामिल था. अदालत ने माना कि उसकी स्वीकारोक्ति स्वैच्छिक थी और उसने घटना में अपनी भूमिका छिपाने की कोशिश नहीं की.

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न्यायाधीश मंजीत सिंह मन्हास ने कहा कि गश्ती दल के किसी भी सदस्य को चोट नहीं आई और मामला हत्या के प्रयास की “अत्यंत गंभीर श्रेणी” में नहीं आता, इसलिए आजीवन कारावास जैसी कठोर सजा की जरूरत नहीं दिखी.

अदालत ने उसे हत्या के प्रयास के साथ-साथ शस्त्र अधिनियम की धारा 7/25 के तहत 10 साल की सजा और विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत 5 साल की सजा सुनाई है. लेकिन राहत यह है कि तीनों सजाएं एक साथ चलेंगी.

उकासा 20 जून 2016 से हिरासत में है, इसलिए अदालत के अनुसार उसकी रिहाई अगले साल के मध्य यानी 2026 के आसपास संभव है.

20 हजार रुपये का जुर्माना न देने पर एक महीने की और कैद

कोर्ट ने तीनों अपराधों के लिए कुल 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. अगर उकासा यह राशि नहीं भरता है तो उसे एक महीने की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी. 

न्यायाधीश ने आदेश दिया कि सजा पूरी करने के बाद दोषी को विदेशी अधिनियम 1946 के तहत कार्रवाई के लिए संबंधित विभाग को सौंपा जाएगा. इसमें उसके अपने देश पाकिस्तान को प्रत्यावर्तन (डिपोर्टेशन) भी शामिल है.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अपराध गंभीर जरूर हैं, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए आरोपी को आजीवन कारावास देना उचित नहीं होता. अदालत ने उसके लंबे समय से जेल में रहने, स्वीकारोक्ति और किसी को चोट न आने सजा में राहत की वजह बनी.

यह फैसला कुपवाड़ा में सुरक्षा से जुड़े पुराने मामलों पर न्यायिक प्रक्रिया के आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.