संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान बारामूला से लोकसभा सांसद और अवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) प्रमुख इंजीनियर राशिद का संबोधन उस समय भावुक हो गया, जब उन्होंने वंदे मातरम् पर हो रही चर्चा के बीच अपनी मातृभूमि, आजादी और विभाजन के दर्द का जिक्र किया. लंबे समय तक जेल में रहने के बाद पहली बार संसद पहुंचे राशिद का बयान सत्र का सबसे चर्चित क्षण बन गया.

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सदन में खड़े होकर राशिद ने कहा कि अपनी मातृभूमि से किसको प्यार नहीं हो सकता. मैं सलाम करता हूं उस धरती को जिसने अंग्रेजों से आजादी हासिल की. लेकिन अंग्रेजों की चालाकियों और यहां की नेतृत्व राजनीति के कारण हमारा वह महान देश विभाजित होकर कई हिस्सों में बंट गया. उनका यह बयान सुनते ही सदन में सन्नाटा पसर गया.

आप सब तो घर जाएंगे... मुझे तो वापस जेल जाना है- राशिद

इंजीनियर राशिद ने वंदे मातरम् पर उठी बहस को लेकर भी अपनी स्पष्ट राय रखी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत और मातृभूमि सम्मान की चीजें हैं, लेकिन इन पर बहस का तरीका संवादात्मक होना चाहिए, न कि एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने वाला. उन्होंने कहा कि हमारा देश हमेशा से विविधताओं का घर रहा है. हमें इन विविधताओं को मनाने की जरूरत है, न कि इन्हें विवाद का कारण बनाने की.

अपने संबोधन के अंत में राशिद ने वह बात कही जिसने पूरे सदन को झकझोर दिया. उन्होंने मुस्कुराते हुए, लेकिन गहरी पीड़ा के साथ कहा कि “आप सब तो घर जाएंगे... मुझे तो वापस जेल जाना है. इस वाक्य ने सदन में मौजूद नेताओं को शांत कर दिया. कई सांसदों ने उनकी ओर देखा लेकिन कुछ पल के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया.

लोकतंत्र का सच्चा अर्थ सिर्फ जीत-हार में नहीं- राशिद

राशिद ने अपने ऊपर लगे आरोपों, जेल में बिताए समय और कश्मीर के लोगों की पीड़ा को सीधे तौर पर संसद की चौखट पर ला रखा. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का सच्चा अर्थ सिर्फ जीत-हार में नहीं, बल्कि उन आवाजों को सुनने में है जो विपरीत परिस्थितियों से निकलकर आती हैं.

सत्र के सबसे यादगार क्षणों में शामिल हुआ राशिद का संबोधन

संसद से उनके इस संबोधन के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है. कुछ नेता उनके भाषण को 'भावनात्मक और साहसी' बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे 'राजनीतिक संदेश देने की कोशिश' कह रहे हैं. लेकिन इतना साफ है कि इंजीनियर राशिद का यह संबोधन संसद सत्र के सबसे यादगार क्षणों में शामिल हो गया है.

उनके बयान ने न केवल वंदे मातरम् बहस को नया मोड़ दिया है, बल्कि कश्मीर मुद्दे, लोकतांत्रिक अधिकारों और जेल में बंद नेताओं की स्थिति को भी राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया है.

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