14 जुलाई को श्रीनगर की सड़कों पर एक अलग ही नजारा देखने को मिला. मौका था 13 जुलाई 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का, जब तत्कालीन महाराज हरि सिंह डोगरा शासन की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों की याद में नेतागण नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान पहुंचना चाह रहे थे.  हालांकि, रविवार (13 जुलाई) को प्रशासन द्वारा नजरबंद किए जाने के बाद नेताओें ने तय कर लिया था कि इस बार उन्हें कोई रोक नहीं पाएगा. 

नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तेज कदमों से पैदल चल पड़े, उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ऑटो में सवार हो गए और मंत्री सकीना इट्टी ने स्कूटी पर लिफ्ट लेकर शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंची.

फुर्ती से कब्रिस्तान के द्वार पर चढ़ गए उमर अब्दुल्ला 

वहीं उमर अब्दुल्ला की ऊर्जा ने सबको चौंका दिया. पुलिस द्वारा सड़कें सील कर दिए जाने और वाहन रोके जाने के बाद उन्होंने खानयार चौक से कब्रिस्तान तक करीब एक किलोमीटर का सफर पैदल तय किया. ‘जेड प्लस’ सुरक्षा प्राप्त मुख्यमंत्री के साथ उनके सुरक्षाकर्मी हर कदम पर दौड़ते रहे. लेकिन सबसे चौंकाने वाला पल तब आया जब कब्रिस्तान का गेट बंद मिलने पर उमर ने देखते ही देखते कब्रिस्तान की ऊंची गेट को चढ़कर भीतर जाने की कोशिश की. पुलिस उन्हें रोकने को तैयार थी, मगर उमर ने झटके से उनके हाथ अलग कर दिए.

ऑटोरिक्शा से फारूक अब्दुल्ला, स्कूटी से सकीना इट्टी पहुंचे स्मारक 

यह सिलसिला यहीं नहीं थमा. 87 वर्षीय फारूक अब्दुल्ला, जिन्हें उनके राजनीतिक जीवन में कई बार 'अपरंपरागत रास्तों' के लिए जाना गया है, पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद ऑटोरिक्शा लेकर स्मारक की ओर रवाना हुए. उनके चेहरे और आंखों में सम्मान की चमक थी. वहीं उमर के कैबिनेट की एकमात्र महिला मंत्री सकीना इट्टी ने सबको तब चौंकाया जब वे स्कूटी की पिछली सीट पर बैठकर मौके पर पहुंचीं. पुलिस द्वारा उनकी गाड़ी रोके जाने के बाद उन्होंने एक राहगीर से लिफ्ट मांग ली और बिना रुके आगे बढ़ती गईं.

कोई गैरकानूनी काम नहीं कर रहा था- उमर अब्दुल्ला

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने ‘एक्स’ हैंडल पर एक वीडियो साझा करते हुए लिखा, “मुझे शारीरिक बल का सामना करना पड़ा, लेकिन मेरा इरादा अडिग था. मैं कोई गैरकानूनी काम नहीं कर रहा था. बल्कि इन 'कानून के रखवालों' को यह बताना चाहिए कि वे हमें फातिहा पढ़ने से रोकने के लिए किस कानून का सहारा ले रहे थे.”